देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को अगुआ बनाकर निश्चित तौर पर कांग्रेस पार्टी ने अपनी पारम्परिक राजनीति की थमी हुई ज़मीन में हलचल पैदा करने का सबसे बड़ा दाव चला है। इन दिनों कांग्रेस पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश के साथ ही देशभर में प्रियंका की छवि तैयार करने का काम किया जा रहा है। ऐसा दर्शाया जा रहा है कि प्रियंका बहुत ही सौम्य, सहज, मानवीय, ईमानदार व निष्ठावान नेत्री साबित होने वाली है। 2014 के पिछले आम चुनाव में जिस तरह भाजपा ने नरेंद्र मोदी के रूप में अपने प्रधानमन्त्री दावेदार को चमकाकर देशभर के वोट बटोरे थे, ठीक वहीं तरीका इस दफ़ा कांग्रेस ने अपनाया है। अब तक सियासत की सक्रियता से दूर रही प्रियंका गांधी वाड्रा को बदलाव और उम्मीद की नई बयार बताकर जनादेश को मोहने का प्रयास कांग्रेस कर रही है। बावजूद इसके कई कारण ऐसे हैं जो हिचकौले खाते हुए सरकती कांग्रेसी नौका की राह में बाधा बने बैठे हैं।
एक परिवार की पार्टी एवं वंशवाद के ठप्पे से उबरना अब और मुश्किल:
कुशल जननेत्री के रूप में प्रियंका गांधी की शख्सियत को भुनाने का काम जिस तेजी से कांग्रेस कर रही है, उससे दौगुनी रफ़्तार से आम लोगों में यह बात प्रचलित हो चुकी है कि कांग्रेस महज़ एक परिवार की पार्टी है। भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी पर गांधी-नेहरू परिवार की बपौती होने का ठप्पा लग चुका है। राहुल के बाद अब प्रियंका को पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी दिए जाने से आमजन और देश के मतदाता वर्ग में यह धारणा घर कर चुकी है कि कांग्रेस का कार्यकर्ता अपनी अथक मेहनत के बाद भी पार्टी में बड़ा कद पाए या न पाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है; लेकिन एक परिवार विशेष का सदस्य बगैर किसी आपाधापी के कांग्रेस में ख़ास हो सकता है, यह सुनिश्चित दिखाई पड़ता है। प्रजातंत्र में जनता अक्सर ऐसी स्थितियों के प्रतिरोध में होती है।
घोटालों के दाग चस्पा है पिछली कांग्रेस सरकारों पर, उन्हें धो पाना मुश्किल:
राफेल सौदे की आरोपित अनियमितताओं को छोड़ दिया जाए तो वर्तमान सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई भी लांछन लगा पाने में विपक्ष नाकाम रहा है। वहीं देश की पिछली कांग्रेस सरकारें बोफोर्स, कॉमनवेल्थ, कोयला, सत्यम व स्पेक्ट्रम जैसी दागदार घपलेबाजी से जूझती नज़र आती है। हालांकि देश का जागरूक मतदाता मोदी सरकार के कार्यकाल में वांछित संतुष्टि प्राप्त नहीं कर पाया है। बावजूद इसके देश का जनमत, कांग्रेस राज की करतूतों को प्रियंका में छलकती इंदिरा गांधी की सूरत के पीछे नज़रअंदाज़ कर दे, फिलहाल तो ऐसी संभावना को पुख्ता नहीं किया जा सकता।
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