मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल चयन से लेकर विभागों तक का बंटवारा, सब दिल्ली के इशारों पर हो रहा है, फिर सरकार के क्या मायने?

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राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, इन तीनों राज्यों के चुनाव प्रचार से लेकर यहां टिकट वितरण, सरकार बनने, मुख्यमंत्री चयन और अब मंत्रिमंडल गठन तक हर एक मौके पर कांग्रेस आलाकमान बहुत हद तक सक्रिय रहा है। इसमें  कहा जा रहा है कि प्रदेश में मंत्रियों के विभाग तय करने एवं सरकारी काम एवं फैंसले भी इसी तरह दिल्ली के इशारे पर लिए जाएंगे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक राजनैतिक दल के रूप में विधायिका, कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के अंदर होने जा रही इस भारी घुसपैठ पर गौर किया जाए तो यह भारतीय लोकतान्त्रिक एवं संवैधानिक प्रक्रिया के विपरीत जान पड़ती है। टिकट वितरण और चुनाव प्रचार तो पूरी तरह राजनैतिक चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा है अतः यदि राजनैतिक दल इसमें भागीदारी करे तो हर्ज़ नहीं, लेकिन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों के चयन के साथ शासन एवं सरकार की कार्यप्रणाली निर्धारित करने का काम किसी राजनैतिक दल का नहीं, शासन व्यवस्था का होता है, और यदि इस काम को करने में राजव्यवस्था जब सियासी दलों के आदेश-अनुदेश का इंतज़ार करने लगे तो समझिए कि दलमोहक अवस्था के आगे हमारी व्यवस्था धता हो चुकी है।

मुख्यमंत्री का चयन यदि शीर्ष नेतृत्व करे, तो फिर विधायक दल का क्या औचित्य:

tweeted by @RahulGandhi

राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ सहित तीनों ही राज्यों में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री का चयन विधायक दल की जगह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी व पार्टी आलाकमान द्वारा किया गया।     यह प्रक्रिया भारतीय लोकतंत्र व संविधान की उस प्रक्रिया को नकारती है, जिसके अनुसार मुख्यमंत्री का चयन विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के विधायक आपसी सहमति से करते हैं। मुख्यमंत्री को विधानसभा में बहुमत प्राप्त विधायक दल का नेता माना जाता है। इसी के साथ प्रदेश में किस-किस विधायक को मंत्री पद दिया जाएगा इसके लिए नाम निर्धारण भी दिल्ली से हुआ है। अब उन मंत्रियों के विभागों का बंटवारा भी रिमोट कण्ट्रोल प्रणाली के तहत सीधे दिल्ली से राजस्थान में किए जाने के आसार है।

ऐसे में यदि राजनैतिक दल का मुखिया किसी राज्य में मुख्यमंत्री व अन्य मंत्री-संत्री का चयन कर, उनके विभागों का बंटवारा करे तो यह पूरी तरह गैर संवैधानिक, व अलोकतान्त्रिक प्रक्रिया के अंदर आती है।

भाजपा भी इस विषय पर कहीं पीछे नहीं:

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गौरतलब है कि पार्टी नेतृत्व द्वारा राज्यों में मुख्यमन्त्री व मंत्रालयिक प्रभार निर्धारित करने के विषय पर भाजपा कांग्रेस से कहीं आगे नज़र आती है। पार्टी अध्यक्ष व आलाकमान द्वारा बगैर विधायक दल की सहमति के, मुख्यमंत्री तय करने की प्रक्रिया भाजपा द्वारा पिछले कुछ वर्षों में सरकार बनाने पर हर एक राज्य में की गई है। गुजरात, उत्तर प्रदेश, गोवा आदि इनमें प्रमुख उदाहरण हैं, जहां पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने ही कर्ता-धर्ता की भूमिका निभाई है।

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