भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों के लिए संपर्क को सुगम बनाते हुए संभावनाओं के द्वार खोलने के उद्देश्य से असम और अरुणाचल प्रदेश के मध्य ब्रम्हपुत्र नदी पर बोगीवील रेल-सड़क सेतु बनकर तैयार हुआ है। इस सेतु का उदघाटन और इस सेतु मार्ग से होकर गुजरने वाली पहली रेलगाड़ी का शुभारम्भ आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा। एशिया के दूसरे और देश के सबसे लम्बे इस रेल-सड़क सेतु की विशेषताएं जानिए निम्नांकित बिंदुओं में, जो इसे ख़ास बनाती है।
- असम के डिब्रूगढ़ से अरुणाचल प्रदेश के धेमाजी ज़िले को जोड़ने वाला यह रेल-सड़क सेतु ब्रम्हपुत्र नदी के ऊपर से होकर गुज़रता है।
- 4.9 किलोमीटर लम्बाई वाला यह रेल-सड़क सेतु, रेलवे ट्रेक और सड़क मार्ग को अपने में समाहित करता है। इसके निचले हिस्से में दो लेन का ब्रॉड गेज रेलवे ट्रेक है तो ऊपर वाले हिस्से में तीन लेन का सड़क मार्ग है।
- 22 जनवरी 1997 को इसकी बुनियाद पूर्व प्रधानमन्त्री एचडी देवगौड़ा ने रखी थी, लेकिन इसका काम 21 जनवरी 2002 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय शुरू किया गया था। उसके बाद यूपीए सरकार में इसका काम कुछ ख़ास गति से आगे नहीं बाद पाया था।
- प्रोजेक्ट में देरी के कारण इसकी अनुमानित लागत में तीन गुना तक बढ़ोतरी हुई है। आरम्भ में जहां इस पर 1767 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान था वह अब बढ़कर 5800 करोड़ रुपए हो गई है।
- ब्रम्हपुत्र नदी के उत्तरी और दक्षिणी किनारों को जोड़ने वाला यह सेतु असम के तिनसुखिया से अरुणाचल प्रदेश के नाहरलागुन (ईंटानगर) तक ट्रेन ट्रैवल समय को 10 घंटे तक कम करेगा। तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से असम के डिब्रूगढ़ तक रेल द्वारा जाने में लगने वाले समय में 3 घंटे की बचत होगी।
- इस सेतु द्वारा असम के डिब्रूगढ़ से रंगिया तक 170 किलोमीटर की दूरी कम होगी। ब्रम्हपुत्र नदी का अतिरिक्त चक्कर नहीं काटना पडेगा।
- यह भारत का एकमात्र सेतु है जो पूरी तरह स्टील कंक्रीट और कम्पोज़िट गार्ड्स से बना है। प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर के अनुसार यह अगले 120 वर्ष तक उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सेवा प्रदान करेगा।
- इस सेतु की सहायता से भारत के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में सुरक्षा बालों का निर्बाध आवागमन संभव हो सकेगा। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह एक रणनीतिक सफलता मानी जा रही है।
- उत्तरी-पूर्वी भारत में चिकित्सा, शिक्षा, व्यापार, परिवहन, सेवाएं आदि को सुगम एवं सहज बनाने में यह सेतु उपयोगी होगा।