2009 के बाद से भारत में लोकसभा और विधानसभा के सभी चुनाव ईवीएम की सहायता से सम्पादित करवाए जा रहे हैं। इससे पहले तक पूरे देश में बैलेट पेपर से चुनाव करवाए जाते थे। चूंकि ईवीएम मतदान प्रणाली में मशीन की सक्रिय भूमिका होती है, अतः समय-समय पर इसकी निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
भाजपा-कांग्रेस समेत कई राजनैतिक दलों ने ईवीएम प्रणाली पर जताया संदेह:
भारतीय राजनीति में दो मुख्य दौर ऐसे आए, जब ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए-2 की सत्ता में वापसी के बाद जहां भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम प्रणाली को संदेह की नज़र से देखा तो वर्तमान में भाजपा द्वारा देशभर के चुनावों में किए गए बेहतरीन प्रदर्शन के बाद कई विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम प्रणाली को गड़बड़ युक्त होने का दावा किया। हालांकि ये दावें बड़े बेदम निकले। निर्वाचन आयोग द्वारा जब सभी राजनैतिक दलों को ईवीएम हैक अथवा नियंत्रित करके दिखाने की चुनौती दी गई तो सभी राजनैतिक दल पीछे हट गए।
ईवीएम हैकिंग: पक्ष और विपक्ष में तर्क:
ईवीएम हैक या नियंत्रित होने के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि यह एक मानव निर्मित मशीन है। आज विज्ञान के युग में जब मानव नित-नई सम्भावनाओं को साकार करने में लगा है, रोबोटिक तकनीकी की सहायता से कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा मानविक चातुर्य और संवेदनाओं को मात देने में लगा है तो तकनीक से जुडी परिकल्पनाएं और अन्वेषण विश्वास योग्य प्रतीत होने में लगे हैं। ऐसे समय में हम किसी भी मानव द्वारा निर्मित मशीन में किसी प्रकार की अवांछित हस्तक्षेप की संभावना जता सकते हैं।
मसलन, जब पेट्रोल पंप की मशीन में एक चिप लगाकर ग्राहकों से ठगी की जा सकती है तो ईवीएम में गड़बड़ी और मतदाताओं से ठगी भी एक व्यावहारिक बात लगती है।
ईवीएम नियंत्रण को नकारने वाला दूसरा पहलू यह है कि बिना किसी ई-कनेक्टिविटी के ईवीएम कैसे नियंत्रित या हैक हो सकती है? साथ ही अखिल भारतीय स्तर पर चुनावों में काम आने वाली लाखों ईवीएम को गुपचुप तरीके से नियंत्रित या हैक कर सकना तो असंभव ही लगता है।
विवादों में घिरी रही है ईवीएम की विश्वसनीयता:
ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) जितनी सहजता के साथ भारतीय मतदाता वर्ग द्वारा स्वीकार की गई इसकी विश्वसनीयता पर हमेशा से उतने ही संदेहास्पद सवाल उठते रहे हैं। वर्ष 2001 से अक्सर ही ईवीएम को लेकर उठे सवाल याचिकाओं के रूप में न्यायपालिका के सामने आते रहे। साल 2001 में मद्रास उच्च न्यायालय, 2002 में केरला उच्च न्यायालय 2004 में दिल्ली, कर्नाटक और बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष ईवीएम से जुडी याचिकाएं रखी गई। इसके बाद साल 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सामने ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए इससे जुडी शंकाओं को पेश किया गया। आखिरकार इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारतीय न्यायप्रणाली भी अब ईवीएम पर विश्वसनीयता की मुहर लगा चुकी है।
देश से बाहर भी है हमारे यहां निर्मित ईवीएम की मांग:
भारत में निर्मित ईवीएम उच्च गुणवत्ता के कारण भारत से बाहर भी काम में ली जाती है। पड़ौसी देश नेपाल, भूटान सहित नामीबिया, केन्या, फिजी एवं कई एशियाई और अफ़्रीकी देश ऐसे हैं जहां चुनावों में भारत में निर्मित ईवीएम उपयोग में लाई जाती है।
इसलिए ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन)है बेहतर विकल्प:
दुनिया के सबसे बड़े संसदीय लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत में स्थानीय स्वशासन तक विकेन्द्रित व्यवस्था होने के कारण लगभग हर वर्ष चुनाव होते हैं। करीब 90 करोड़ मतदाता संख्या वाले देश में बैलेट पेपर से चुनाव करवाने पर प्रत्येक मतदाता के लिए अलग-अलग बैलेट पेपर की व्यवस्था करनी पड़ेगी। ऐसे में आज चुनाव यदि ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर से करवाए जाए तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना कागज़ इस पूरी व्यवस्था में खर्च होगा!! इस कागज़ के उत्पादन के लिए न जाने कितने ही पेड़ काटे जाएंगे!! इस तरह बैलेट पेपर के उपयोग को लगभग ख़त्म कर, बिना कागज़ उपयोग किए चुनाव संपन्न करवाने में निश्चित ही ईवीएम एक कारगर उपाय है। इसके साथ ही पर्यावरण एवं पारिस्थितिक संरक्षण के लिहाज़ से यह बेहतर कदम है।