पुलवामा आतंकी हमले के बाद आतंक और पाकिस्तान के प्रति भारतभर में गुस्सा उबाल मार रहा है। बहुत हद तक ये जायज़ भी है, क्योंकि इस हमले में भारतीय सुरक्षा बल के 40 से ज़्यादा जवानों ने जान गवा दी। इस आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरपरस्त हमारा ही पड़ौसी देश पाकिस्तान है, उसकी हुकूमत है। 1947 में औपनिवेशिक आज़ादी के बाद से भारत से अलग हुआ पाकिस्तान हमेशा से ही भारत का बुरा चाहता रहा है। कश्मीर पर अधिकार के मसले को लेकर अक्सर भारत से झगड़ता रहा है, और अपने इस स्वार्थ के कारण ही पाकिस्तान दुनियाभर में आतंक को पनाह देने वाला, उसकी तरफ़दारी करने वाला राष्ट्र बन गया है। बावजूद इसके आज पाकिस्तान की आवाम का एक हिस्सा ट्विटर पर #AntiHateChallange हैशटैग प्रचलित कर रहा है। सन्देश दे रहा है कि ”मैं एक पाकिस्तानी हूं और पुलवामा आतंकी हमले की निंदा करता हूं।”
आतंक का विरोध तो वो जवान भी कर रहे थे, जो पुलवामा में शहीद हुए:
”चाहे खून हमारा हो या उनका, इंसानियत का खून है। चाहे युद्ध पूर्व में छिड़े या पश्चिम में छेड़ा जाएं, यह विश्व-शांति की हत्या है। युद्ध अपने आप में एक समस्या है। युद्ध से समस्याओं का समाधान कैसे होगा?”
मशहूर शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी की इन पंक्तियों का हम एहतराम करते है, लेकिन साथ ही सवाल भी उठता है कि हर बार खून हमारा ही क्यों? यह इतना सस्ता तो कतई नहीं!!
रही बात आतंक के विरोध की तो तख्तियों पर आतंक की आलोचना का सन्देश लिखकर उसकी निंदा करने के भाव में फोटो खिचवाकर और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाली पाकिस्तान की आवाम को जान लेना चाहिए कि बड़ी मुस्तैदी से अपनी जान दाव पर लगाकर भारतीय सैन्य बल के हर एक जवान ने हमेशा ही आतंक की ख़िलाफ़त की है। दिन-रात, हर घडी-हर पहर, हिन्दुस्तानी सुरक्षा बलों के प्रहरियों ने आतंक पर सजगता से निगहबानी की है। इसी बीच आज ढोंग रच रहे पाकिस्तान के रहमो-करम पर पलने वाले आतंकियों ने अक्सर ही धोखे और कायरता से हमें छला है।
निश्चित ही पाकिस्तान की आम जनता का आतंक से ताल्लुकात नहीं होगा, लेकिन आज जो पाकिस्तानी, #AntiHateChallange का प्रदर्शन कर भारत से सहानुभूति दर्शाने में लगे हैं, इसी सन्देश के साथ कभी अपने मुल्क़ के बेग़ैरत हुक्मरानों का प्रतिकार किया होता, तो यकीन मानिए आज यह बदनुमा दौर देखने को भी नहीं मिलता।
पुलवामा हमले के बाद आज शान्ति की पैरवी कर रही पाकिस्तानी आवाम समझती होगी कि युद्ध और विनाश तो कोई भारतीय भी नहीं चाहता, लेकिन उस बुराई, उस आतंक का खात्मा करने की कसक ज़रूर है, जो हर बार कायरता और धोखे से वार कर रही है, इंसानियत का कत्ल कर रही है, निर्दोषों को लील रही है। वरना उन बच्चों का क्या क़सूर था जिनका बचपन ही ज़िम्मेदारी के बोझ तले आ गया, उन माताओं की क्या गलती थी और आज भी आंगन में बैठी अपने सपूत के आने की राह तक रही हैं, उन वीरांगनाओं का क्या गुनाह था जिनकी कलाइयों के कंगन आज छनकते नहीं हैं, उन बहनों का क्या दोष जिनकी राखियां फीकी पड़ गई, उन पिता की क्या गुस्ताख़ी रही होगी जिसके कन्धों ने अपने कुल की अर्थी ढोई है। सब कुछ छिन गया, सब कुछ चला गया, बावजूद युद्ध वो भी नहीं चाहते, लेकिन एक हिसाब मांग रहे हैं।
आप मोमबत्ती भी जला लेंगे, प्यार के सन्देश की तख्तियां भी लटका लेंगे लेकिन यकीन मानिए बेआबरू सी लग रही आपकी संवेदना के पास कोई जवाब नहीं है, वेदना में उमड़ते हुए उन मनों के उधड़ते सवालों के आगे।
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