भारतीय राजनीति के अबूझ माने जाने वाले किरदार रामविलास पासवान आखिरकार एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के साथ ही बने हुए है। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रमुख पासवान और भाजपा के बीच बिहार में सीटों को लेकर चल रहा विवाद समाप्त हो गया है। इसके तहत लोजपा बिहार की 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी तथा भाजपा और जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) 17 – 17 सीटों पर मैदान में होंगी। इसी के साथ भाजपा, रामविलास पासवान को राज्यसभा भेजने पर भी राजी हो गई है। इस तरह अपने मुताबिक़ सीटों का बंटवारा करवाकर एक बार फिर पासवान ने राष्ट्रीय राजनीती में अपना महत्व साबित कर दिया है।
इसलिए कहा जाता है पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक:
रामविलास पासवान को भारतीय राजनीति का मौसम वैज्ञानिक, ट्रम्प कार्ड और भाग्यशाली चेहरा कहा जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि पासवान हमेशा से सत्ता पक्ष की तरफ रहे है। हर बार चुनाव से पहले पासवान जिस दल अथवा गठबंधन की तरफ होते है, सरकार उसी की बनती है। पासवान की राजनीति की यह विशेषता है कि वे सामंज्यशील व लचीला रुख अख्तियार करते है। यहीं कारण है कि वे विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक अब तक छह प्रधानमंत्रियों के मंत्रालयों का हिस्सा रह चुके है। बिहार की ज़मीनी राजनीति में अच्छी पकड़ रखने वाले पासवान सूबे की करीब 15 सीटों पर जातिगत आधार पर प्रभाव डालते है।
पिछले चुनाव में 30 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा इस बार 17 पर ही मैदान में:
जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन कर बिहार में क़िस्मत आज़माने जा रही भाजपा को इस बार सीटों के वितरण में नुकसान उठाना पड़ा है। गौरतलब है कि 2014 के पिछले आम चुनाव के समय एनडीए में भाजपा के साथ पासवान के नेतृत्व में लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी सहयोगी पार्टियां थी। तब भाजपा ने कुल 40 में से 30 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, तथा लोजपा 7 और आरएलएसपी 3 सीटों पर चुनावी मैदान में थी। भाजपा की 22, लोजपा की 6 और आरएलएसपी की 3 सीटों पर विजय के साथ तब एनडीए ने 31 सीटों पर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी। तुलना की जाए तो 2014 में 30 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा अबकी बार महज़ 17 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतार रही है।
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