मज़हब, डर, गुस्से और नफ़रत के बारे में यह कहा था नसीरुद्दीन शाह ने, पढ़िए

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Naseeruddin shah

भारतीय सिनेमा के मंझे हुए अदाकार नसीरुद्दीन शाह ऐसा कुछ बोल गए, कि देशभर के तमाम लोगों के साथ अपने प्रशंसकों के निशाने पर आ गए। कारवां-ए-मोहब्बत नामक चैनल को दिए अपने वीडियो इंटरव्यू को नसीरुद्दीन शाह ने गुरुवार को अपने यू ट्यूब चैनल पर शेयर कर दिया। इस इंटरव्यू में नसीरुद्दीन शाह ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुई इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की ह्त्या का ज़िक्र करते हुए गाय के बदले इंसान के मारे जाने पर चिंता जताई। नसीर ने धार्मिक आधार पर फ़ैल रही नफरतों के प्रति गुस्सा भी दर्शाया।

नसीरुद्दीन शाह ने ये बातें क्यों बोली इसका तो अंदाज़ा लगाना मुश्किल है, लेकिन उनके इस इंटरव्यू के बाद से कई लोगों द्वारा उनकी आलोचना की जा रही है।

यह कहा था नसीर ने:

नसीरुद्दीन शाह ने कारवां-ए-मोहब्बत को दिए गए वीडियो इंटरव्यू में कहा था कि ”नफ़रत का ये जहर हमारे समाज में फैल चुका है, और इस जिन्न को दोबारा बोतल में बंद करना मुश्किल होगा। खुली छूट मिल गई है कानून को हाथ में लेने की। हम लोगों ने देखा है कई इलाकों में गाय की मौत को ज्यादा अहमियत दी जाती है, बनिस्बत एक पुलिस अफसर की मौत के। कई बार मुझे फ़िक्र होती है, अपनी औलाद के बारे में सोचकर, क्योंकि उनका तो कोई एक मज़हब ही नहीं है। मजहबी तालीम मुझे मिली थी और मेरी पत्नी रत्ना को बहुत कम मिली थी। एक उदार घर-परिवार था उसका। हमने अपने बच्चों को मज़हबी तालीम बिल्कुल नहीं दी, क्योंकि मेरा मानना है कि अच्छाई और बुराई का मज़हब से कुछ लेना-देना नहीं है। अच्छाई और बुराई के बारे में ज़रूर उन्हें सिखाया है।

कुरान शरीफ की एकाध आयत ज़रूर याद कराई है, क्योंकि मेरा मानना है कि इसके रियाज से तलस्सुफ सुधरता है। जिस तरह से हिंदी का तलस्सुफ सुधरता है रामायण या महाभारत पढ़ के। खुशकिस्मती से मैंने बचपन में अरबी कुरान शरीफ़ पढ़ी थी। कई आयतें मुझे अब भी याद हैं। उसकी वजह से मेरे ख्याल से मेरा तलस्सुफ सही है। तो फिक्र होती है अपने बच्चों के बारे में, क्योंकि कल उन्हें अगर एक भीड़ ने घेर लिया कि तुम हिंदू हो या मुसलमान, तो उनके पास कोई जवाब ही नहीं होगा। हालात जल्दी सुधरते तो मुझे नज़र नहीं आ रहे है। इन बातों से मुझे डर नहीं लगता, गुस्सा आता है। और मैं चाहता हूं कि हर सही सोंचने वाले इंसान को गुस्सा आना चाहिए, डर नहीं लगना चाहिए। हमारा घर है ये वतन, हमें कौन निकाल सकता है यहां से!”

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