सिविल लाइन्स: यहां मुश्किल है हार और जीत का अनुमान लगा पाना

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ठीक पांच साल बाद जयपुर की सिविल लाइन्स विधानसभा में फिर से पद और प्रतिष्ठा के लिए कांटे की टक्कर नज़र आने वाली है। इस 7 दिसंबर को राजस्थान विधानसभा के होने वाले चुनाव में सिविल लाइन्स से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रताप सिंह खाचरियावास और भाजपा की तरफ से अरुण चतुर्वेदी मैदान में होंगे। 2013 के पिछले चुनाव में पराजित होने वाले प्रताप सिंह खाचरियावास इस बार पूरी तैयारी के साथ मंत्री अरुण चतुर्वेदी के सामने होंगे। इसलिए किसी भी दावेदार के लिए यह मुक़ाबला आसान नहीं होने वाला।

इस सरकार में मंत्री रहे हैं अरुण चतुर्वेदी:

11 हज़ार से अधिक मतों से कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप सिंह खाचरियावास को शिकस्त देने वाले अरुण चतुर्वेदी को भाजपा की इस सरकार में सामजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग का ज़िम्मा दिया गया था। साल 2007 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहने वाले चतुर्वेदी पेशे से वकील है। जातिगत रूप से देखा जाए तो चतुर्वेदी ब्राम्हण मतदाताओं पर अच्छी पकड़ रखते हैं। हालांकि इस सरकार में मंत्री पद पर रहते हुए कई आरोप उन पर लगे हैं, उनसे पार पाकर जनमत को अपनी तरफ बरकरार रखना चतुर्वेदी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है।

पांच साल से सक्रिय हैं प्रताप सिंह खाचरियावास:

इन पांच सालों में प्रताप सिंह खाचरियावास की सक्रियता को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता  है कि 2013 में मिली अनपेक्षित पराजय के बाद से ही खाचरियावास ने फिर से चुनावी मैदान में उतरने की ठान ली थी। 2008 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रताप सिंह भाजपा के अशोक लाहौटी को हराकर पहली बार सिविल लाइन्स से विधायक बने थे। क्षेत्रीय लोगों की माने तो अपने कार्यकाल के दौरान खाचरियावास एक लोकप्रिय नेता बनकर उभरे थे। 2013 में मिली हार के बाद प्रताप सिंह का बेहद सक्रिय होना और कांग्रेस की तरफ से उन्हें जयपुर जिलाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी दिया जाना खाचरियावास और कांग्रेस के आपसी विश्वास को दर्शाता है।

 

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