देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सियासी ज़मीन में विशेष प्रभाव रखने वाली समाजवादी पार्टी को काफी लम्बे समय तक एक ही परिवार की पार्टी माना जाता था। साल 1992 में लोहिया के समाजवाद को आधार बनाकर मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी (सपा) की ज़मीन तैयार की। पार्टी की स्थापना के बाद से ही मुलायम पार्टी के सर्वेसर्वा बने रहे। मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव हर दौर में नेताजी का साथ देते रहे। पूरी ज़िम्मेदारी के साथ संगठन को मज़बूत करने का काम किया। साल 2012 में अखिलेश सूबे के मुखिया बन गए। पूरी पार्टी एकजुट थी, संगठन एकमत था। फिर जब 2017 के विधानसभा चुनाव आए तो इस कदर टूट कर बिखरे कि आज एक होना मुश्किल हो गया।
कांग्रेस के साथ गठबंधन था विवाद का मुख्य कारण:
गौरतलब है कि राम मनोहर लोहिया का समाजवाद, कांग्रेसी विचारधारा के विरोध के रूप में पनपा था। लोहिया के समाजवाद को आधार मानकर ही समाजवादी पार्टी का गठन किया गया। ऐसे में जब 2017 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा और कांग्रेस का गठबंधन बना लिया तो यह बात मुलायम और शिवपाल को हज़म नहीं हुई। इसी के साथ पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर भी खींचतान होने लगी। अब पार्टी में विचारधारा की लड़ाई वर्चस्व और व्यक्ति तक पहुँच चुकी थी। चुनाव परिणाम आए तो सपा और कांग्रेस का बेमेल गठबंधन अच्छे से निपट चुका था। अखिलेश धड़ा अलग था, शिवपाल का गुट अलग था। मुलायम अब भी दोनों की समझाने में लगे थे। लेकिन चाचा-भतीजे के आत्मसम्मान के आगे नेताजी की एक न चली।
चाचा शिवपाल ने बनाई प्रगतिशील समाजवादी पार्टी:
कलह के उस दौर में 25 वर्षों से पार्टी अध्यक्ष रहे मुलायम को विस्थापित कर अखिलेश पार्टी के अध्यक्ष बन गए, चुनाव बुरी तरह हार गए। चाचा शिवपाल से मतभेद हुए। जनता और कार्यकर्ताओं में मज़बूत पकड़ रखने वाले शिवपाल ने नया संगठन खड़ा कर लिया। समाजवादी सेकुलर मोर्चा का गठन हुआ, फिर उसका नाम बदलकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) किया गया।