नोटा यानी उक्त में से कोई नहीं का विकल्प राजस्थान विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस एवं भाजपा दोनों के लिए सर दर्द बन चुका है। चुनाव से पहले हुए ओपिनियन पोल के सर्वे बताते हैं कि इस बार अनेकों ऐसे मतदाता है जो नोटा का उपयोग करने जा रहे हैं। गौरतलब है कि भारत के चुनावों में नोटा का पहले-पहल प्रयोग साल 2013 में हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में हुआ था। इनमें राजस्थान सहित मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, व संघ शासित प्रदेश दिल्ली शामिल है। मतलब साफ़ है कि राजस्थान इस दफा दूसरी बार विधानसभा चुनाव में नोटा को आजमाने जा रहा है।
सवर्ण वर्ग कर रहा है नोटा का प्रचार:
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले ज़ोर पकड़ रहे नोटा अभियान के पीछे सवर्ण वर्ग की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। बताया जा रहा है कि देश और प्रदेश का जातीय सवर्ण तबका इस बार नोटा की तरफ अधिक आकर्षित हुआ है। हाल ही में घटित एसटी/एसटी एक्ट विवाद एवं पद्मावत फिल्म विवाद को इसके पीछे का मुख्य कारण रहा। मसलन सवर्ण वर्ग को भाजपा का परम्परागत मतदाता माना जाता है। ऐसे में यदि यह वर्ग नाराज़गी व्यक्त करते हुए नोटा की तरफ जाता है, तो भाजपा की चुनावी चाल डगमगा सकती है।
कांग्रेस को भी होगा नुकसान:
नोटा से नुकसान महज़ भाजपा को होगा, यह अपने आप में अधूरी बात है। पिछले पांच वर्षों से प्रदेश कांग्रेस की सक्रियता, भाजपा सरकार के प्रति जनता में रोष, कांग्रेस द्वारा आमजन से जुड़ाव, विपक्ष द्वारा मुद्दों को उठाते हुए सरकार की घेराबंदी, प्रदेश में हर पांच साल में होने वाला सत्ता परिवर्तन आदि अनेकों कारण हैं जिनसे राजस्थान में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना है। ऐसे में यदि नोटा की हवा ज़ोर पकड़ती है, तो निश्चित ही यह कांग्रेस से उसका जनाधार छीन सकती है।