देश में सालाना 4 लाख करोड़ रुपए टर्नओवर देने वाला ज्वैलरी सेक्टर पिछले 2 साल से मुश्किल में है। छोटे स्तर पर मंदी के साथ ही आलम यह है कि साल के शुरूआती 7 महीनें में देश का हीरा और जवाहरात निर्यात 2% तक घट गया है। इस हालिया ट्रेंड को देखते हुए सालभर में निर्यात के 5% तक घटने की आशंका है। आइए समझते हैं क्या वे कारण रहे जिनसे देश के ज्वैलरी बाज़ार की चमक फीकी पड़ चुकी है।
विमुद्रीकरण रहा एक कारण:
दो साल पहले हुए विमुद्रीकरण ने बाज़ार में चल रहे सभी बड़े नोटों को बेकार कर दिया था। लोगों का पैसा बैंक में जमा हो गया था, जोकि बाद में धीरे-धीरे नियंत्रित रूप में लोगों तक वापस आया था। सरकार द्वारा की गई इस सख्ती का भी नकारात्मक प्रभाव जवाहरात सेक्टर की मंदी पर पड़ा। इसके बाद जब सरकार द्वारा नकद में जवाहरात खरीदने की सीमा 2 लाख तक कर दी गई तो ग्राहक की खरीद सीमा पर नियंत्रण लागू होने से सोने की खरीद में गिरावट आई।
जीएसटी से महंगी हुई ज्वैलरी:
यदि सोने के आभूषणों की बात करे तो पहले जहां सोने पर 1 प्रतिशत सर्विस टैक्स और 1 प्रतिशत वैट मिलाकर कुल 2 प्रतिशत कर लगता था वहीं अब कुल 3 प्रतिशत जीएसटी सोने पर लगने लगा है। इस अतिरिक्त एक प्रतिशत का भार ग्राहकों पर लग रहा है। इसके अलावा जीएसटी लागू होने के बाद सोने से आभूषण बनाने पर 5% निर्माण कर (मेकिंग चार्ज) भी लगने लगा है। इस तरह जीएसटी वह कारण रहा जिससे अब सोने से बनी ज्वैलरी की खरीद सीमित हुई है।
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की धोखाधड़ी भी पड़ी भारी:
देश के दिग्गज हीरा एवं ज्वैलरी कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का धोखाधड़ी कर देश से भाग जाने का असर भी भारतीय ज्वैलरी सेक्टर में देखने को मिल रहा है। सर्राफा बाज़ार की माने तो मोदी और चौकसी का इस तरह बैंकों के हज़ारों करोड़ रुपए लेकर भाग जाने के बाद सरकारी बैंकों ने देश के छोटे एवं मंझले जवाहरात कारोबारियों को कर्ज देना पूरी तरह से बंद कर दिया है। मंदी का सामना कर रहा जवाहरात सेक्टर अब नकदी संकट से जूझ रहा है। बैंकों द्वारा क़र्ज़ नहीं दिए जाने के साथ ही कारोबारियों की कैश क्रेडिट सीमा भी कम किए जाने पर विचार चल रहा है।
जयपुर सर्राफा व्यापार समिति के अध्यक्ष से बात करने पर जानकारी मिली कि इस बार दीपावली के दौरान भी शहर के ज्वैलरी बाज़ार में खरीददारी के हिसाब से कोई ख़ास रौनक देखने को नहीं मिली।