भारत के महान किसान नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीति जब चरम पर थी तभी देश में एक दूसरे किसान नेता का अभ्युदय हो रहा था। नाम था चौधरी देवीलाल। साल 1911 में हरियाणा के सिरसा में जन्में देवीलाल ने तरुणाई में ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रियता से स्वतंत्रता संग्राम में महती भूमिका निभाई। देवीलाल स्वाधीन भारत के उन ज़मीनी नेताओं में से रहे जिन्होंने जनता के हितों को सब तरह की लालसा से आगे रखा, ज़िम्मेदारी से राजनीति की, सियासी कुर्सियों पर रहते हुए भी धरती पुत्र बने रहे। स्वाधीन भारत के पहले चुनाव से ही राजनीति की मुख्य धारा में जुड़ने वाले देवीलाल दो बार भारत के उप प्रधानमंत्री नियुक्त हुए, दो बार हरियाणा का मुख्यमंत्री पद संभाला। अक्खड़ और देसी मिज़ाज़ वाले देवीलाल की छवि शहरी वर्ग में किसी दबंग लठैत की थी, वे स्वयंभू होना नहीं चाहते थे लेकिन किंग मेकर का किरदार अदा करते रहे। ये वो कारण हैं कि राजनीति में गॉड फादर बनने की चाह रखने वाले लोग आज भी उन्हें ताऊ कहकर सलामी ठोंकने से हिचकिचाते नहीं।
पद का मोह नहीं था ताऊ देवीलाल को:
ताऊ का मतलब पिता का बड़ा भाई होता है। 1987 से 1991 वह दौर था जब देवीलाल भारत की केंद्रीय राजनीति में ताऊ की भूमिका में आ चुके थे। साल 1971 में कांग्रेस छोड़ने वाले देवीलाल ने इंदिरा सरकार द्वारा देशभर में लागू किए गए आपातकाल के दौरान 19 महीने जेलखाने में गुज़ारे। 1977 में देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में भूमिका निभाई।
साल 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में देवीलाल ने लोक दल का गठन किया और हरियाणा संघर्ष समिति के बैनर तले चुनाव लड़ा। राज्य की 90 में से 85 सीटों पर देवीलाल ने रिकॉर्ड जीत दर्ज़ की। कांग्रेस 5 सीटों पर सिमट गई। इस तरह देवीलाल दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि 1989 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सीकर और हरियाणा की रोहतक लोकसभा से बम्पर जीत दर्ज़ कर निर्वाचित हुए।
भारतीय राजनीति के इस सीधे-साधे नेता ने कभी पद का मोह नहीं किया। साल 1989 की पहली दिसंबर की घटना है, देश में आम चुनाव के नतीजों के साथ ही राजीव गांधी सरकार गिर चुकी थी। संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक चल रही थी। उस बैठक में विश्वनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री पद के दावेदार के लिए चौधरी देवीलाल का नाम आगे कर दिया। प्रस्ताव पर चंद्रशेखर द्वारा समर्थन देने से देवीलाल को संसदीय दल का नेता मान लिया गया था। इस पर देवीलाल मुस्कुराकर खड़े हुए और धन्यवाद ज्ञापित कर कहा, “मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ कहते हैं, मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूं।” इतनी सहजता से प्रधानमंत्री का पद स्वीकार न करने का उदाहरण कही और देखने को नहीं मिलता।
देवीलाल कहा करते थे- ‘पहले किसान हूं, बाद में मुख्यमंत्री‘:
वर्ष 1977 में विधानसभा का चुनाव जीतकर देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री चुने गए। उसी वर्ष राज्य के कई गांवों में बाढ़ आ गई। बताते हैं कि तब देवीलाल ने केंद्र से मदद मांगी लेकिन वित्त की कमी के कारण नामुराद होकर लौटना पड़ा। इसके बाद देवीलाल ने गांव-गांव घूमकर लोगों को ख़ुद ही मिट्टी के बांध बनाने के लिए प्रेरित किया। बांध निर्माण के लिए मिटटी की पहली परात वे ख़ुद डालते। इस तरह अपने मुख्यमंत्री को काम करते देख पूरा गांव काम में जुट जाता और देखते ही देखते मिट्टी का बांध बनकर तैयार हो जाता। हरियाणा वासियों के लिए देवीलाल मसीहा से कम नहीं थे। अपने राज्य हरियाणा में देवीलाल ने ही देश में सबसे पहले बुज़ुर्गों की मासिक पेंशन बांधी, इस फैंसले की उस वक़्त आलोचना भी हुई लेकिन आज देश के कई राज्य इस योजना को चला रहे हैं। काम के बदले अनाज की अवधारणा को व्यवहारिक स्वरूप भी देवीलाल ने दिया था। वे कहा करते थे- ‘मैं पहले किसान हूं, बाद में मुख्यमंत्री।’
6 अप्रैल, 2001 वह दिन था जब भारतीय राजनीति के इस ठेठ ताऊ का निधन हो गया। गांव-ग्रामीण के दिलों में बसने वाले चौधरी देवीलाल का अंतिम संस्कार राजधानी दिल्ली में यमुना तट पर चौधरी चरण सिंह की समाधि ‘किसान घाट’ के पास किया गया। उस भूमि का नाम पड़ा ‘संघर्ष स्थल‘।