भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मंगलवार को लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिया। अपने इस घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124A के तहत राष्ट्रद्रोह का प्रावधान ख़त्म करने का वादा किया है। पार्टी का कहना है कि इस क़ानून का दुरुपयोग किया जाता रहा है, और अन्य कई घटनाओं के कारण आज यह अनावश्यक और असंबंधित हो गया है।
तो क्या कहती है धारा 124A:
आपको बता दें कि आईपीसी की यह धारा औपनिवेशिक शासनकाल में अंग्रेज़ राजशाही द्वारा देश पर लादी गई थी। इसके तहत कोई भी यदि बोलकर, लिखकर, भाषण, अभिव्यक्ति, प्रदर्शित कर कानून-निर्देश व्यवस्था द्वारा भारत में स्थापित सरकार के खिलाफ किसी तरह का विद्रोह या नफरत भड़काने की कोशिश करता है या भड़काता है तो उसे दंड दिया जाने का प्रावधान है यह दंड क़ैद या जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष व सीपीआई नेता कन्हैया कुमार और गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल पर इस धारा के तहत मामला दर्ज़ किया गया है।
आज के समय में नहीं है इतनी महत्वता:
गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 124A ब्रिटिश सरकार के समय में देशभर में क़ानून व्यवस्था बनाए रखने और शासन को सुरक्षित बनाए रखने के लिए लाइ गई थी। लेकिन वर्तमान में लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के कारण इस क़ानून का इतना महत्व नहीं रह जाता, इसके निम्न कारण हैं।
पहला कारण कि यह धारा भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार अनुच्छेद 19(1) पर आरोपित होता है। 19(2) के तहत पहले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उपयुक्त प्रतिबन्ध लगाए जा चुके हैं। ऐसे में 124A का अधिक महत्व नहीं रह जाता।
124A का प्रावधान हमारे पुलिस तंत्र को तानाशाही शक्ति देता है, क्योंकि यह पुलिस तय करती है कि क्या भाषण या कार्य सरकार के विरोध में सार्वजनिक हिंसा को भडकावा देता है या नहीं।
हालांकि साल 1950 के रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया कि 124A या राष्ट्रद्रोह कानून संविधान के प्रावधानों के साथ असंगत है। बावजूद इसके वर्तमान में सोशल मीडिया को लेकर देखा जाए तो इस प्लेटफॉर्म पर सन्दर्भों में स्पष्टीकरण की विविधता के चलते इस क़ानून को शासन की आलोचना करने पर लागू कर दिया जाता है, जोकि अक्सर अनुचित प्रतीत होता है। आज के समय में जब किसी लोकतांत्रिक राष्ट्र/राज्य में भविष्य की बेहतरी के लिए वाक् स्वतंत्रता पर विमर्श ज़रूरी हो जाता है तो इस क़ानून की जांच की जानी आवश्यक लगती है।