साल 2014 में सरकार में आने से पहले भाजपा ने भारत के शहरों को स्मार्ट सिटी में बदलने का वादा अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। इसके बाद जून 2015 में केंद्र सरकार ने देशभर में 100 शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना लागू की थी। लेकिन आश्चर्य यह कि आज सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने को है और देश में एक भी शहर स्मार्ट सिटी घोषित नहीं हो पाया है। वही जनवरी 2019 में दायर की गई एक आरटीआई के जवाब में खुलासा हुआ है कि केंद्र सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी योजना के लिए प्रस्तावित बजट राशि में से केवल मात्र 7 फ़ीसदी धनराशि ही अब तक खर्ची गई है।
काशी भी क्योटो बनने से अभी बहुत दूर:
गौरतलब है कि भारत के 100 चयनित शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र सरकार ने कुल 203172 करोड़ रूपए प्रस्तावित किए थे। सूचना के अधिकार के अंतर्गत मिली जानकारी कहती है कि इस राशि में से 7 प्रतिशत यानी 14882 करोड़ रूपए ही मोदी सरकार इन शहरों के लिए आवंटित कर पाई है। योजनान्तर्गत सरकार को यह तक नहीं पता कि काम किस स्तर पर किस हिसाब से चल रहा है। बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (काशी) की करें तो प्रधानमंत्री ने भले ही काशी को क्योटो बनाने का हसीन सपना दिखाया हो लेकिन इसे हकीकत में बदलना अभी बहुत दूर की कौड़ी नज़र आता है। क्योंकि हाल यह है कि वाराणसी के लिए प्रस्तावित हुए कुल 2267.62 करोड़ रुपयों में से 8.63 फ़ीसदी अर्थात 196 करोड़ रुपये ही अभी तक केंद्र द्वारा दिए गए हैं। इसी के साथ कमाल यह है कि इन 100 शहरों में से 10 शहर ऐसे हैं जहां मात्र 2 – 2 करोड़ रुपये ही केंद्र सरकार योजना लागू होने के बाद के 4 वर्षों में पहुंचा पाई है। राजधानी दिल्ली को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए प्रस्तावित धनराशि में से भी 6.53 प्रतिशत ही केंद्र सरकार मुहैया करवा पाई है। ऐसे में केंद्र सरकार की यह योजना भी महज़ जुमला बनकर रह गई है, यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।