डीआरडीओ चेयरमैन जी सतीश रेड्डी से जानिए A-SAT मिसाइल प्रोजेक्ट (मिशन शक्ति) के बारे में

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photo: @Dr.GSR.in

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को आगे आकर सूचना दी कि भारत ने अपना मिशन शक्ति पूरा करते हुए ‘लॉ अर्थ ऑर्बिट’ में उपग्रह को निशाना बनाने की क्षमता विकसित कर ली है। प्रधानमंत्री द्वारा दी गई यह जानकारी भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक बड़ी कामयाबी है। यह संगठन के अनुसंधानकर्ताओं व वैज्ञानिकों की अथक मरहनत का परिणाम है कि भारत आज दुनिया की अंतरिक्ष महाशक्तियों में शामिल हो गया है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि को जानिए डीआरडीओ प्रमुख जी सतीश रेड्डी से। एएनआई को दिए अपने इंटरव्यू में रेड्डी ने इस प्रोजेक्ट पर कहा कि- ”A-SAT मिसाइल प्रोजेक्ट दो साल पहले ही प्रारम्भ किया गया था, और अभी छह महीने पहले ही मिशन मोड में लाया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को हमने रणनीतिक मामलों पर रिपोर्ट की तो उन्होंने प्रधानमंत्री से सहमति लेकर परीक्षण से आगे बढ़ने की दिशा दी। A-SAT मिसाइल कार्यक्रम के मिशन मोड में आने के बाद के 6 महीनों में लगभग 100 वैज्ञानिकों ने निर्धारित समय पर मिशन पूरा करने के लिए दिन-रात काम किया है। 28 मार्च, बुधवार के दिन सुबह 11:16 बजे ओडिशा के बालासोर से हमने मिसाइल लॉन्च की और 3 मिनट के अंदर इसने निर्धारित लक्ष्य जोकि इसरो का एक निष्क्रिय छोटा उपग्रह था, पर प्रहार किया।”

1000 किलोमीटर तक की मारक क्षमता से लैस है A-SAT मिसाइल:

जी सतीश रेड्डी ने बताया कि ”A-SAT मिसाइल विशेष रूप से एक एंटी-सैटेलाइट हथियार के रूप में विकसित हुई है। यह मिसाइल तकनीकी दृष्टि से बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा अनुप्रयोगों के लिए विकसित की गई है। यह विशेष तौर पर एक मारक वाहन है। यह पृथ्वी मिसाइल की व्युत्पन्न नहीं है। इसकी मारक क्षमता की बात की जाए तो यह 1000 किलोमीटर तक है। A-SAT मिसाइल सभी ‘लॉ अर्थ ऑर्बिट’ सैटेलाइट्स को निशाना बनाने में सक्षम है। बुधवार को हमने 300 किलोमीटर दूर लक्ष्य को ‘काइनेटिक किल’ तरीके से प्रहार किया, जिसका मतलब सैटेलाइट पर प्रत्यक्ष प्रहार से है। यह कई तकनीकों के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे हमने देश में पूरी तरह से स्वदेशी रूप से विकसित किया है और हमने कुछ सेंटीमीटर के भीतर सटीकता हासिल की है, यह बहुत ही उच्च स्तर की सटीकता है। हम ‘लॉ अर्थ ऑर्बिट’ (LEO) उपग्रहों को संभालने की क्षमता रखते हैं, लेकिन हमने जानबूझकर कम ऊंचाई (300 किलोमीटर) पर ही निशाना तय किया, इसका कारण यह है कि भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है, हमें देखना पड़ता है कि सभी अंतरिक्ष संपत्ति सुरक्षित हैं और कचरे का तेजी से क्षय हुआ है।”

अग्नि-5 के सहारे हम पहले भी हासिल कर चुके हैं एंटी सैटेलाइट हथियार की उपलब्धि:

यहां आपको बता दें कि साल 2012 में भी भारत ने उपग्रहों को लक्षित करने और नष्ट करने की क्षमता विकसित की थी। तब अग्नि-5 मिसाइल के ज़रिए हम इसमें दक्ष हुए थे, हालांकि वह ‘लॉ अर्थ ऑर्बिट’ के लिए नहीं था।

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