आज 20 मार्च को ‘वर्ल्ड स्पैरो डे’ (विश्व गौरैया दिवस) है। आपमें से अधिकांश को शायद मालूम भी न होगा कि ऐसा भी कोई दिवस मनाया जाता है। 21वीं सदी में जन्में लोगों की बात करें तो उन्होंने कभी-कभार ही गौरैया की चहचहाहट सुनी होगी। टीवी पर या कहे कि यू ट्यूब पर इसे देखा होगा। आज से 10 साल पहले तो नन्ही गौरैया अपने परिवार के साथ हमारे घर में छत की मुंडेर पर, किसी दीवार पर आकर बैठ जाती थी। सवेरे-सवेरे महकती थी, चहचहाती थी, घर-आंगन में सुख़नवर ज़िन्दगी का अहसास होता था। गांवों में तो मुर्गे की बांघ के बाद जो प्राकृतिक आवाज़ सुनाई पड़ती थी वो गौरैया की चहक थी। अब वो आवाज़ कानों तक नहीं आती है, अब गौरेया आपके-हमारे आंगन में चहचहाती नहीं है। अब दीवारें सूनी ही लरकती हैं, छज्जे, आंगन खामोश ही रहते हैं।
पिछले दस साल से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है ‘वर्ल्ड स्पेरो डे‘:
आपको बता दें कि हर वर्ष ‘वर्ल्ड स्पेरो डे’ मनाने की शुरुआत नेचर फॉर एवर सोसायटी द्वारा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, कार्नेल लैब्स ऑफ़ ऑर्निथोलॉजी, इकोसिस एक्शन फाउंडेशन, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट, दुधवा नेशनल पार्क, लाइव इन के सहयोग से साल 2010 के 20 मार्च से की गई। इसके बाद हर साल इस दिन को गौरैया की विलुप्तता पर मंथन किया जाता है, विचार संगोष्ठियों का आयोजन कर इनके संरक्षण पर विमर्श किया जाता है।
मोबाइल रेडिएशन के कारण पिछले 10 सालों में विलुप्त हुई गौरैया:
गौरतलब है कि पिछले 10 -15 वर्षों में गौरैया चिड़िया की आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट दर्ज़ हुई है। हवा, पानी, मिटटी, खाद्य में दिनोंदिन बढ़ते प्रदूषण, कंक्रीटीकरण, ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही मोबाइल टावर का रेडिएशन ने बेतहाशा रूप से गौरैया की जान ली है। बड़ी तेजी से गौरैया विलुप्ति की कगार पर आ गई है। इनकी विभिन्न प्रजातियों को आधुनिकीकरण की मार झेलनी पड़ी है। चिंता की बात यह है कि मोबाइल रेडिएशन गौरैया को ख़त्म करने के साथ-साथ इनकी जनन क्षमता में भी कमी ला रहा है। स्थिति ऐसी ही विकट रही तो दुर्लभ ही होगा कि अगले 10 वर्ष बाद कोई गौरैया चिड़िया चहकती भी नज़र आए। इसलिए आगे आइए, प्रकृति बचाने में सहयोग कीजिए, वृक्षारोपण में भागीदार बनिए, गौरैया के लिए अन्न-जल का प्रबंध कर भविष्य को जीने लायक बनाइए।