2014 के आम चुनाव से पहले अपने आप को चाय वाला बताने वाले नरेंद्र मोदी अब चौकीदार पर अड़ गए है। हर चुनाव की तरह भेष बदलने की रीत चलन में है। बावजूद दोनों स्थितियों में फर्क साफ़ तौर पर दिखाई देता है। तब यूपीए सरकार की असफलता भुनाते हुए मोदी अक्सर ज़मीनी मुद्दों पर भी बहस करते थे। महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा पर बोलते नज़र आते थे। तमाम मुद्दों पर कांग्रेस सरकार को नाकाम बता घेरते नज़र आते थे। टीवी चैनल्स पर विज्ञापन आते थे कि ‘अब और नहीं’, ‘बहुत हुई महंगाई की मार – अबकी बार मोदी सरकार।’ इस तरह मोदी जब ‘अच्छे दिनों’ के कसीदे पढ़ते थे तो जनता को मसीहा लगते थे, युग परिवर्तक लगते थे, उद्धारक लगते थे। आज उन्हीं अच्छे दिनों के बारें में पलटकर जनता पूंछ ले, तो गरियाने लगते है। ‘पुंडुचेरी को वणक्कम’ कहकर चल देते है। व्यापारी, मज़दूर, किसान, जवान, महिला, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, बेरोजगार के सवालों से आंख चुराते है।
दिल पर हाथ रखकर बताइए, किस बात की चौकीदारी कर रहे हो साहब:
सत्ता साधने के लिए अपनाई जाने वाली साहब की ट्रेडमार्क हथकण्डेबाजी भले न बदली हो, लेकिन साहब आपका मिज़ाज़ बदल चुका है। आप कभी फ़कीर बनते है, कभी मां गंगा के पुत्र, कभी मज़दूर, कभी स्वयं सेवक तो चुनावों के आसपास चौकीदार पर ठहर जाते है। ट्वीटर पर नाम के आगे चौकीदार लिख लेते है। दिल पर हाथ रखकर बताइए, किस बात की चौकीदारी कर रहे हो साहब? आपसे पहले कोई प्रधानमंत्री ही नहीं हुआ क्या! इन 5 सालों में देश पर ऐसा कौनसा संकट आन पड़ा है! चौकीदारी का इतना ही शौक है तो विजय माल्या को देश छोड़ने से रोकते साहब, बैंकों का एनपीए बढ़ाकर फरार होने वाले मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, संदेसरा को रोकते। ये भगौड़ेबाजी आप रोक नहीं पाए, सरहद पर शहादत, कश्मीर में हिंसा, रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी, अन्नदाता की ख़ुदकुशी, दलित, आदिवासी, महिलाओं पर अत्याचार आप रोक नहीं पाए साहब। फिर चौकीदार होने के मापदंड क्या है? आपकी देखादेखी कर चिट फ़ंड घोटाले के आरोपी मुकुल रॉय भी चौकीदार बन रहे है, यौन शोषण के आरोपी एमजे अकबर, डीडीसीए और वोडाफ़ोन वाले अरुण जेटली, विधायक पर जूते बरसाने वाले सांसद शरद त्रिपाठी, सृजन वाले सुशील मोदी सब चौकीदार बन गए। ये चौकीदार-चौकीदार के फेर में देश को उलझा दिया है, चुनाव को चुटकुला बना दिया है। जनता चौकीदार चोर कहती है या चौकीदार बनकर आपके साथ आती है, बस इसी बात पर चुनाव का समीकरण बैठा दिया। सोशल मीडिया/ट्वीटर की नोक-झोंक पर चुनाव केंद्रित कर दिया गया है। ये चाटुकारिता, चमचागिरी और चौकीदारी तो चलती रहेगी। आप पांच साल के शासन का लेखा-जोखा जनता के सामने रखिए, रोटी और रोजगार पर बात कीजिए, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा पर विमर्श कीजिए। असल मुद्दों पर बात होगी, तभी देश संवरेगा, आगे बढ़ेगा। अन्यथा हर पांच साल बाद चुनाव आते जाएंगे, राजनीति विजित होगी, देश हारता जाएगा।