बहुजन समाज पार्टी की लखनऊ में आयोजित हुई अखिल भारतीय बैठक में बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए देश में कहीं भी बसपा, कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। मोदी सरकार और भाजपा विरोध में एकजुट होने की जुगत लगाते विपक्ष के लिए मायावती का यह बयान बहुत हद तक हौंसले तोड़ने वाला है। हालांकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ मिलकर मायावती सीधे तौर पर भाजपा को टक्कर दे रही है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसी उत्तर प्रदेश में जिस कांग्रेस पार्टी को उसने कमज़ोर समझा था वह प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में पहले से कही अधिक मज़बूत है और फिलहाल सपा-बसपा गठबंधन से आगे नज़र आ रही है। ऐसे में 2014 लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट जाने वाली बसपा के लिए कांग्रेस से किनारे कर सपा के साथ आ जाने को जहां मतदाता बेमेल गठबंधन मान रहे हैं तो विश्लेषक यह भी बताते हैं कि सूबे में भाजपा के बाद अकेले दम पर कांग्रेस सशक्त दिखाई दे रही हैं वही सपा विपक्ष की सबसे कमज़ोर कड़ी है।
साल 1984 के बाद से यूपी में कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं आ पाई है। पार्टी का बड़ा वोटबैंक रहा ओबीसी तब सपा और भाजपा में बंट गया था। इसी बीच बसपा की तरफ जाटव दलित, मुस्लिम और ब्राम्हण अधिक आकर्षित हुए। उसके बाद भाजपा पर जहां सवर्ण हितैषी होने का दावा किया गया तो सपा पर यादवों की पार्टी हो जाने का टैग लग गया। ऐसे में माना जा रहा है कि डगमग चल रहा पिछड़ा वर्ग इस बार फिर से कांग्रेस का हाथ थाम सकता है। इसी के साथ कांग्रेस जिस उत्साह से सूबे में चुनाव की तैयारी कर रही है, वह युवा मतदाता वर्ग को भी अपनी ओर प्रभावित कर रहा है।
कांग्रेस के साथ आकर मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में फायदा उठा सकती है बसपा:
कांग्रेस पार्टी भले ही 2014 में हाशिए पर चली गई हो, लेकिन अभी भी पूरे देश में मज़बूत जनाधार रखती है इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ़ मायावती के नेतृत्व में बसपा देश के अधिकांश क्षेत्रों में प्रभाव तो रखती है, लेकिन वह बहुत सीमित है। उसके भरोसे पार्टी लोकसभा में सीट निकालने का यकीन पुख्ता नहीं कर सकती। ऐसे में यदि बसपा उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से गठबंधन कर लेती तो लोकसभा में कांग्रेस का जनमत बसपा का साथ देता इसकी संभावना अधिक थी।