पिछले कुछ सालों में यदि आपने गौर न भी किया हो तो भी यह बात आपके सामने आई होगी, कि इस देश में रहने वाले अनेकों लोगों को देशद्रोही कहा गया, पाकिस्तान चले जाने को कहा गया, देशविरोधी होने का तमगा लगाया गया। इन सबके पीछे कारण महज़ यह कि निशाने पर लिए गए व्यक्ति के विचार उन विचारों से मेल नहीं खाते जो सत्ता की सरपरस्ती में पनपते हैं। ऐसे में हर उस व्यक्ति को दबाया जा रहा है जो सवाल उठाना चाहता है और हर उस सवाल को कुचला जा रहा है, जो राजशाही को आंख दिखाने की ज़ुर्रत करता है। मुल्क़ के हुक्मरान अपने हिसाब से कायदे-क़ानून तय करने में लगे हैं। आपकी भाषा, रहन-सहन, खान-पान, पहनावा, सलीका हर चीज़ तय की जा रही है। जकड़ा जा रहा है उस जाल में जिसके आरपार देखने पर सत्ता के शाहो नज़र आते हैं। इस जाल से आपकी किसी भी हरकत पर हदबंदी के मायने तय किए जा सकते हैं। फिर भी यह जाल अभेद नहीं है, क्योंकि उस पार बैठे लोगों से आप सतर्क हो सकते हैं। उनकी हर एक चाल पर नज़र रख सकते हैं। वो विचार खत्म करना चाहते हैं। आपका विश्लेषण उन्हें पसंद नहीं। गुनहगार है वो, लोकतंत्र की ह्त्या के, विचारों की ह्त्या के, दोषी हैं चारों ओर दिखाई देने वाली मरी हुई मानसिकता के। बावजूद आप सवाल नहीं उठा सकते, मुनादियों की जमात आपके पीछे लग जाएगी, आपको देशद्रोही बता दिया जाएगा।
सरकार की आलोचना, राष्ट्र की बुराई नहीं हुआ करती:
सरकारें आती है जाती है, दौर बदलते हैं, राजपाठ बदलते हैं, दरबान बदलते हैं, यह सब अस्थायी है, मगर यह देश अखंड है, स्थायी है। और समझना होगा कि देश महज़ एक ज़मीन का टुकड़ा नहीं होता, देश इसके लोगों से मिलकर बनता है। दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश भारत, आबादी के लिहाज़ से दूसरे स्थान पर आता है। 130 करोड़ से अधिक लोग हैं, इतने ही शरीर हैं, इतने ही दिमाग हैं। इन लोगों के विचार, व्यवहार, संस्कृति, परिधान, तौर-तरीका, मानस, आकार, आहार भिन्न-भिन्न होते हैं। देश में विविधता है, क्षेत्र, रंग, रूप, कद-काठी, स्वाद की विविधता है। ऐसे में सब इस जैसा नहीं सोंच सकते। देश बहुरंगी है, एकरंगी नहीं बन सकता। आप देश के मायने समझिए, देशवासी होने के मायने समझिए। यह न आपकी, न हमारी किसी की बपौती नहीं है। ऐसे में सवाल तो उठाए जाएंगे, बेशक उठाए जाएंगे।