अयोध्या विवादित भूमि मामले पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने सम्बंधित सभी पक्षों से मध्यस्थता की कोशिश करने की बात कही। न्यायालय ने कहा कि यह केस कोई सामान्य भूमि विवाद नहीं है, यदि मध्यस्थता द्वारा मामले को थोड़ा बहुत भी सरल किया जा सके, यदि इसकी 1 प्रतिशत भी संभावना हो तो यह करनी चाहिए। मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में गठित पांच न्यायधीशों की संवैधानिक पीठ के इस सुझाव पर निर्मोही अखाड़े के वकील को छोड़कर अन्य पक्षों ने कहा कि मध्यस्थता की कोशिश पहले हो चुकी है, लेकिन उससे कोई हल नहीं निकला।
केस की रिपोर्ट का अनुवाद करने में ही लग जाएंगे करीब 4 महीने:
गौरतलब है कि अयोध्या भूमि विवाद केस, भूमि विशेष पर राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का दावा ठोकने को लेकर है। ऐसे में यह पूरी तरह से दो धर्मों के लिए ध्रुवीय मामला बन जाता है। भारत, जहां संविधान पंथनिरपेक्षता/धर्मनिरपेक्षता की बात कहता है, तो ऐसे मामलों पर निर्णय देना अति पेचीदा बन जाता है। इसी कारण पिछले कई दशक से न्यायालय में और करीब 9 साल से शीर्ष अदालत में अटके हुए इस केस पर अभी कोई निष्कर्ष सामने नहीं आ सका है। मंगलवार को ही उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल ने 38146 पन्नों की रिपोर्ट न्यायधीशों की गठित बेंच को सौंपी। इस रिपोर्ट का अंग्रेजी में अनुवाद किया जाना है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 8 अनुवादक हैं, प्रत्येक अनुवादक एक दिन में 7-8 पृष्ठ अनुवाद करते हैं, अधिकतम 12-15 पृष्ठ भी एक दिन में अनुवाद किए गए हैं। हालांकि आधी से अधिक रिपोर्ट अनुवादित हो चुकी है, बावजूद अभी पूरी रिपोर्ट के अनुवादित होने में 4 महीने लग सकते हैं।
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