अपनी मांगों को लेकर नासिक से मुंबई तक 50 हज़ार किसानों का पैदल मार्च, अन्नदाता की व्यथा समझो सरकार

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पिछले ही साल के तीसरे महीने की बात है, जब महाराष्ट्र में अपनी मांगों की ओर राजशाही का ध्यान दिलाने के लिए पैदल मार्च करने वाले किसानों के पैरों पर पड़े छाले तस्वीरों के रूप में आपके और हमारे सामने आए थे। तब लगा कि दिन-रात खेत में हाड-तोड़ मेहनत करने वाले अन्नदाता की वेदना के सामने सत्ता ज़रूर पिघलेगी और भूमिपुत्र की वह बात मुक़म्मल होगी, जिसके लिए 25 हज़ार किसानों ने अपने तलवों के छिल जाने की फ़िक्र तक न की। अपने अधिकार और कुछ मांगों को लेकर सड़क पर आए किसानों को ढांढस बंधाने के लिए तब महाराष्ट्र सरकार ने एक कमेटी का गठन कर, मांगों पर विचार करने का आश्वासन दे दिया था।

आज साल बीत चुका है, अपनी उन्हीं मांगों को लेकर अन्नदाता फिर सडकों पर है। बुधवार 20 फरवरी को महाराष्ट्र के नासिक से राजधानी मुंबई के लिए करीब 50 हज़ार किसानों ने दोबारा मार्च शुरू कर दिया है। अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में आयोजित इस किसान मार्च में शामिल किसानों का कहना है कि ”महाराष्ट्र के किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए गठित कमेटी की अभी तक एक बैठक भी फडणवीस सरकार ने नहीं बुलाई है। किसानों की उन मांगों पर अभी तक कोई क़दम नहीं उठाया है, जो पिछले वर्ष सरकार के सामने रखी गई थी। ऐसे में 7 दिन का मार्च पूरा कर 27 फरवरी को राजधानी मुंबई में 50 हज़ार अन्नदाता एक साथ पहुंचने वाले हैं।” मार्च की इज़ाज़त पुलिस ने नहीं दी है, जगह-जगह पर किसानों को रोका  जा रहा है। बावजूद इसके लोकतान्त्रिक लहज़े में राजव्यवस्था की अनमनी अंगड़ाई को तोड़ने के लिए महाराष्ट्र के विदर्भ, कोंकण, मराठवाड़ा, पश्चिमी, उत्तरी और हर भाग से किसान आज मुंबई की तरफ़ कूच कर बैठे हैं।

इन प्रमुख मांगों को लेकर किसान मार्च के लिए हैं मज़बूर:

नासिक से मुंबई तक 150 किलोमीटर से अधिक लम्बे मार्च पर निकले किसानों की पहली मांग है कि राज्य सरकार उन मांगों का क्रियान्वयन करें जो पिछले साल लिखित रूप में स्वीकार की गई थी। इनमें 34,000 करोड़ रुपए के ऋणमाफी को अभी तक महज़ 17,700 करोड़ रूपए ही किए जाने को लेकर सवाल है। साथ ही वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन, किसानों के पारिश्रमिक और पेंशन में वृद्धि की मांग भी अभी तक सरकार ने ज़मीन पर नहीं उतारी है।

देख और सुन सकने में असमर्थ से लग रहे सत्तासीनों के सामने किसानों की दूसरी मांग सूखे के उस गंभीर संकट पर शासन का ध्यान दिलाना है, जिसने इस साल करीब आधे महाराष्ट्र को झकझोर दिया है। सूखे की भीषण मार झेल रहे मराठवाड़ा क्षेत्र के आठ ज़िले और विदर्भ के बड़े भाग के किसान चाहते हैं कि तत्काल राहत के लिए पेयजल, भोजन, मनरेगा के तहत रोजगार, मवेशियों के लिए चारा और किसानों को उनकी फसल के नुकसान का मुआवजा देने के लिए सरकार प्रबंध करें। इसी के साथ अधूरी सिंचाई परियोजनाओं को जल्द पूरा करने व पश्चिम में बहने वाली नदियों का पानी अरब सागर में गिरने के स्थान पर देश के राज्यों की तरफ़ मोड़ने की मांग भी किसान, सरकार के सामने रख रहे हैं।

किसानों का तीसरा उद्देश्य केंद्र सरकार को उसकी वादाखिलाफी की ओर ध्यान दिलाना है। गौरतलब है कि 2014 के आमचुनाव से पहले भाजपा द्वारा किसानों के लिए दो बड़ी घोषणाएं की गई थी। इसमें किसानों की पूर्ण कर्ज माफ़ी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए उत्पादन की पूरी लागत पर एमएसपी का डेढ़ गुना दिया जाना शामिल था। ऐसे में आज अखिल भारतीय किसान सभा का आरोप है कि केंद्र सरकार ने किसान को ऋण माफ़ी से वंचित करते हुए, बड़े-बड़े कॉर्पोरेट्स को लाखों-करोड़ों की छूट दी है। अपने आखिरी बजट में पांच एकड़ तक की भूमि वाले किसान परिवार को साल के 6000 रुपए देने की घोषणा को भी किसान मज़ाक करार दे रहे हैं। किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार की जबरन भूमि अधिग्रहण की नीतियों ने खेतिहरों की ज़मीन उद्योगपतियों को दी है और देश में आज भी लाखों भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार किसान, आदिवासी किसान हैं, जिन्हें सरकार ने वन अधिकार अधिनियम के तहत जमीन नहीं दी है।

अब 25 फरवरी से महाराष्ट्र सरकार का बजट सत्र शुरू होने को है, ऐसे में माना जा रहा है कि धरतीपुत्र की तरफ़ से कब का मुंह फेर चुकी राजशाही इस दफ़ा चेतेगी और समझेगी उस अथाह हो चुकी व्यथा को जिसके सायें में भूखों मरता किसान भी देश का पेट भर रहा है।

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