साल 2014 में भारत की 16वीं लोकसभा के गठन के लिए देशभर में आम चुनाव हुए। 10 सालों से सत्ता का सेहरा बांधे बैठी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ताश के पत्तों की तरह ढह गई। मोदी लहर को भाजपा की अभूतपूर्व विजय और कांग्रेस पार्टी के पतन का मुख्य कारण माना गया। हालांकि ज़रा गौर करें तो देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अनायास ही फर्श पर आकर नहीं गिरी थी। आए दिन लगने वाले भ्रष्टाचार और घोटालेबाजी के आरोपों से कांग्रेस पार्टी का दामन दागदार हो चुका था। भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव के जनांदोलनों को देश के बड़े नेताओं ने समर्थन दिया था। उस दौर में अरविन्द केजरीवाल नामक एक अदने से आम आदमी ने अपनी अधिकारी की नौकरी छोड़कर सरकारी भ्रष्टाचार के विरोध में खड़े हुए इन आन्दोलनों को जोशीला स्वर दिया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में युवा छात्रों, महिलाओं व पेशेवर कर्मचारियों को प्रभावित कर तब केजरीवाल ने राजशाही की विफलताओं के बीच सकारात्मक उम्मीद का ऐसा पुलिंदा बांधा कि जिस पर सभी सम्मोहित हो गए। ”भ्रष्टाचार का एक ही काल- केजरीवाल, केजरीवाल” के गूंजते नारों के बीच फिर अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता से शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार को बेदखल कर दिया। सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार के खात्में की सौगंध लेने वाले अरविन्द केजरीवाल को तब लालफीताशाही और अफसरशाही से त्रस्त व्यक्ति मसीहा मान बैठा था। ज़मीर खो चुकी राजनीति में तब केजरीवाल से उम्मीदें थी कि वे जड़ों तक जमे बैठे भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकेंगे। केजरीवाल अपने भाषणों में शीला दीक्षित, कपिल सिब्बल, चिदंबरम जैसे कांग्रेसी नेताओं व शरद पंवार, लालू यादव, ए राजा, कलमाड़ी जैसे लोगों को घोटालेबाज कहते थे। इन नेताओं के विरोध में सशक्त लोकपाल की पैरवी करते हुए केजरीवाल ने अनेकों भूख हड़तालें व अनशन किए।
आज उन्हीं के बगलगीर हो गए केजरीवाल:
अरविन्द केजरीवाल का राजनीतिक प्रवेश और प्रारंभिक संचालन किसी सोए हुए समाज में चेतना फूंकने वाली क्रान्ति से कम नहीं था। गूगल जैसे बड़ी एमएनसी से नौकरियां छोड़कर अनेकों पेशेवर लोगों ने उनकी राजनैतिक विधा पर भरोसा जताया। मगर अफ़सोस कि आज केजरीवाल वह भरोसा खो चुके है। मोदी सरकार की कट्टर खिलाफत करने के लिए अब केजरीवाल उनके भी बगलगीर हो गए हैं जिन्हें कभी वे महाभ्रष्टाचारी कहा करते थे। केजरीवाल के इस दौराहेपन के कारण वर्तमान में आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों व अनेकों बुद्धिजीवियों ने पार्टी छोड़ दी है। केजरीवाल अब लालू के पैर छूने लगे है, स्टालिन, राजा और कलमाड़ी से मिलने लगे है, शरद यादव और शरद पंवार के साथ सौफे पर बैठने लगे है, शीला दीक्षित से मुलाक़ात करने लगे है। ऐसे में अतिमहत्वाकांक्षी अरविन्द केजरीवाल वह सबकुछ कर चुके है जो कोई पतित राजनेता कर सकता है। वर्तमान में केजरीवाल का एक ही लक्ष्य है- मोदी हटाओ, भाजपा हटाओं फिर चाहे इसके लिए किसी को भी साथ मिलाओ। देश की राजनीति को पुनर्यौवन देने आए केजरीवाल राजनीतिक स्वार्थसिद्धि में उलझकर ऐसी बौनी करवट लेंगे, इसका अंदाज़ा शायद ही किसी ने लगाया हो।