17 जनवरी 2016 की रात, ठीक तीन साल पहले, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले होनहार नौजवान रोहित वेमुला ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी। जातिगत आधार पर निचले दर्ज़े का समझे जाने वाले रोहित की इस ख़ुदकुशी ने देशभर के थमे हुए से, मायूस छात्रवर्ग में सिरहन पैदा कर दी। हमारी शिक्षण प्रणाली, संस्थानों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की लापरवाही और नीतियों पर सवालिया निशान लग गया। देश के अनेकों विश्वविद्यालयों से छात्र-छात्राएं क्रोधित हो उठे, यह सोचने को विवश हो गए कि आखिर क्या कारण रहे होंगे, कि एक परिपक्व शोधार्थी छात्र को इस तरह अपनी जान देनी पड़ी। निश्चित ही आत्महत्या समाधान रहित, कायराना क़दम होता है, लेकिन रोहित की मृत्यु ने देशभर की छात्रशक्ति को संगठित किया, बरसों से धुर वैचारिक प्रतिद्वंदी रहे, अम्बेडकराइट्स और वामपंथियों को एक करने का काम किया। और इसी के साथ वह पर्याय बन गया जातिवाद और भेदभाव की खिलाफत का, अन्याय, दमन, शोषण और अत्याचार के प्रति बुलंद विद्रोह का।
निश्चित ही वह ख़ुदकुशी अनायास नहीं थी:
एक हद तक राजनीति में रूचि रखने वाला रोहित वेमुला छात्रजीवन के शुरूआती दौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) का सदस्य था। बाद में एबीवीपी से अलग होकर रोहित जातिगत दलित छात्रों के बीच लोकप्रिय अम्बेडकर छात्र संगठन में शामिल हो गया था। बताते हैं कि साल 2015 के अगस्त माह में रोहित और उसके चार अन्य पीएचडी स्कॉलर साथियों को हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा निलंबित कर दिया गया था। साथ ही उन्हें विश्वविद्यालय के छात्रावास से भी निष्कासित कर दिया गया था। उस समय एबीवीपी के नेताओं ने रोहित और उसके साथियों पर झगड़ा और मारपीट करने का आरोप लगाया था।
इस घटना के करीब 6 महीने बाद 2016 के शुरुआत में रोहित ने अपनी जान दे दी। ये 6 माह उसके लिए कैसे रहे, रोहित से बेहतर शायद ही कोई जान पाए। गरीब और पिछड़ी पृष्ठभूमि से निकला वह छात्र जो पढ़-लिखकर देश के बेहतरीन शिक्षण संस्थानों में से एक में पीएचडी कर रहा हो, राजनीतिक द्वेष अथवा बदले की भावना के चलते उसी विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया जाना, रोहित के लिए किसी तबाही आने से कम नहीं था।
अन्याय और नाइंसाफी के बीच चुप्पी साधे हुए परिवेश में क्रांतिक शोर से गूँज रहे मानस के साथ अपनी ज़िन्दगी ख़त्म करने वाले रोहित ने एक पत्र छोड़ा था। यह पत्र गवाही दे रहा था कि रोहित को मिलने वाली फैलोशिप, उसे विश्वविद्यालय और हॉस्टल से निलंबित करने के बाद से बंद हो चुकी थी। 25 हज़ार रुपए प्रति महीने के हिसाब से मिलने वाली फैलोशिप के मायने एक आम छात्र के लिए बहुत अधिक थे। रोहित चाहता था कि उसे विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने का मौक़ा मिले, 7 माह से रुकी हुई उसकी फैलोशिप किसी तरह शुरू हो जाए और इसके 1 लाख 75 हज़ार रुपए में से 40 हज़ार रुपए वह रामजी को लौटा दे। उस दोस्त को जिसने कभी उससे रुपए मांगे तो नहीं थे, लेकिन रोहित को लौटाना तो था।