2019 लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में आपसी गठबंधन करके सपा और बसपा ने कांग्रेस के नेतृत्व में बनने जा रहे विपक्षी महागठबंधन को खारिज कर दिया है। इसी के साथ कांग्रेस ने भी कह दिया है कि 2019 में वह अकेले दम पर यूपी में चुनाव लड़ने जा रही है। इसी बीच उठ रही एक संभावना को सटीक माने तो पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस पार्टी अकेले चुनाव लड़ने वाली है।
गौरतलब है कि 2009 के लोकसभा चुनाव के वक़्त पश्चिम बंगाल में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का साथ दिया था। उस चुनाव में राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 19 व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 6 सीटें हासिल की थी। केंद्र और राज्य में सुचारु रूप से यूपीए की सरकार चल रही थी, लेकिन साल 2012 के सितम्बर में ममता बनर्जी, खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के विरोध के चलते यूपीए से अलग हो गई थी।
बंगाल में ममता के प्रभुत्व के बीच कांग्रेस को अधिक सीट मिलने के आसार नहीं:
2014 के दौरान मोदी लहर से अछूते रहे राज्यों की बात करें, तो पश्चिम बंगाल का नाम सबसे पहले उभरकर सामने आता है। देश की 16वीं लोकसभा के चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में बम्पर जीत दर्ज़ कर रही थी, तो कांग्रेस का हर जगह से सूपड़ा साफ़ हो रहा था। उस समय भी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस बंगाल की 42 में से 34 सीट जीतने में कामयाब रही तथा भाजपा के हाथ लगी महज़ 2 सीट। इसके बाद 2016 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। अबकी बार भी मोदी लहर पर ममता का कहर भारी साबित हुआ। 294 में से 211 सीटें तृणमूल कांग्रेस ने जीत ली, भाजपा केवल 3 तक पहुंची। ऐसे में स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस अत्यधिक प्रबल स्थिति में हैं। इस स्थिति में 2019 के लिए कांग्रेस को बंगाल से लोकसभा की ज़्यादा सीट मिल जाए, ऐसे आसार नहीं है। यहां यदि कांग्रेस ममता बनर्जी की शर्तों पर चुनाव लड़ती है तो उसे 4 से ज़्यादा सीटों पर मौक़ा नहीं मिलने वाला। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं, कि पश्चिम बंगाल में छोटी-बड़ी वाम पार्टियों को साथ लेकर कांग्रेस, ममता बनर्जी से अलग ही चुनाव लड़ सकती है।
इन बड़े राज्यों में कांग्रेस अपने दम पर, फिर महागठबंधन किस बात का:
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने अकेले सीटों का बंटवारा कर कांग्रेस को महत्वहीन साबित करने की कोशिश की है। इसलिए हो सकता है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब जैसे राज्यों में अपनी मज़बूत स्थिति को देखते हुए कांग्रेस, बसपा से गठबंधन न करे। उस स्थिति में कांग्रेस उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित इन तमाम बड़े राज्यों में अकेले दम पर चुनावी मैदान में होंगी। ऐसे में 2019 के चुनाव में जब 100 दिन से भी कम बचे हैं, तो उम्मीद नहीं कि कोई बड़ी विपक्षी ताक़त महागठबंधन के रूप में भाजपा को चुनौती पेश कर पाएगी। हां, लेकिन चुनाव बाद संयुक्त मोर्चा बनने की संभावना ज़रूर मज़बूत है।
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