क्या मुलायम और कांशीराम को फिर दोहराएगा उत्तर प्रदेश, जानिए दो सियासी दिग्गजों की जुगलबंदी की कहानी

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Kanshiram and Mulayam singh yadav

2019 में भाजपा का विजयरथ रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती का गठबंधन हो चुका है। समाजवाद और बहुजनवाद का यह मिलन साल 1993 के उस दौर का स्मरण कराता है, जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा संस्थापक कांशीराम एक हुए थे।

मिले मुलायम – कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम:

1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव की सरकार अप्रैल 1991 में कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद गिर गई थी। तब हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा सरकार बनाने में सफल रही और कल्याण सिंह सूबे के मुख्यमंत्री बने। साल 1992 के दिसंबर में बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही कल्याण सिंह की सरकार गिर गई। 1993 में फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हुए। राम मंदिर की लहर के बीच भाजपा इस चुनाव द्वारा फिर से सत्ता में आने के लिए आश्वस्त थी, लेकिन चुनाव पूर्व मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बसपा के मध्य हुए गठबंधन ने स्थितियां पलट दी। उस समय सूबे में एक नारा गूंजने लगा- ”मिले मुलायम – कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम।”

422 सीटों वाली यूपी विधानसभा में बसपा ने 164 तथा सपा ने 256 प्रत्याशी मैदान में उतारे। भाजपा के पक्ष में जहां बहुसंख्यक हिन्दू वोट एकमत था, तो मुस्लिम, दलित और ओबीसी के एकमुश्त मत सपा-बसपा गठबंधन को मिले। बसपा के 67 और सपा के 109 प्रत्याशी विधानसभा में पहुंचे वही 1991 में 221 सीटें जीतने वाली भाजपा, इस दफ़ा 177 पर ही ठहर गई। आखिरकार विधानसभा में संख्याबल के जोड़-तोड़ में विजय होकर सपा-बसपा गठबंधन ने सरकार बना ली। इसी के साथ मुलायम सिंह यादव दूसरी बार सूबे के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए। हालांकि इसके 2 वर्ष बाद ही मायावती के प्रभारी होते हुए बसपा ने मुलायम सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

1991 में ही सहयोगी हो चुके थे मुलायम और कांशीराम:

गौरतलब है कि 1991 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में भारी हिंसा हुई थी। जिसके चलते पूरे ज़िले में दोबारा चुनाव करवाया गया। उस समय बसपा अध्यक्ष कांशीराम इटावा से मैदान में उतरे थे। तब मुलायम सिंह ने अपनी जनता पार्टी के उम्मीदवार का प्रचार न करते हुए, कांशीराम को समर्थन दिया था। कांशीराम वह चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचने में सफल रहे। यहीं से मुलायम और कांशीराम की राजनीतिक जुगलबंदी का कारवां शुरू हुआ।

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