2019 के लिए मंझधार में महागठबंधन, चुनाव बाद संयुक्त मोर्चा बनने के आसार

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posted by @rahulgandhi

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों के संगठित महागठबंधन बनाने की मंशा को सपा और बसपा ने धराशाही कर दिया है। उत्तर प्रदेश की 80 सीटों का आपस में बंटवारा करते हुए, अखिलेश यादव और मायावती ने दर्शा दिया है कि 2019 के चुनाव में भले ही वे भाजपा के ख़िलाफ़ लड़े, लेकिन कांग्रेस की अगुवाई में नहीं लड़ने वाले। यूपी की 38 – 38 लोकसभा सीटें आपस में बांटकर सपा और बसपा ने अन्य दलों के लिए 2 व कांग्रेस के लिए भी 2 सीटें छोड़ दी है।

अब कांग्रेस देश के सबसे बड़े राज्य में महज़ 2 सीटों पर दावेदारी करें, तो यह उस पार्टी की प्रतिष्ठा और हितों के ख़िलाफ़ होगा, जिसकी कभी उस राज्य में सत्ता रही हो। ऐसे में पूरी संभावना है कि क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर कांग्रेस भी यूपी की सभी सीटों पर चुनावी ताल ठोकेंगी। इस तरह चुनाव पूर्व ही महागठबंधन का बिखराव होने लगा है। बावजूद इसके सभी विपक्षी दल मोदी और भाजपा विरोध का एकमत नज़रिया लेकर चल रहे हैं। ऐसे में यदि निकट भविष्य में एनडीए बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाती है, तो चुनावों के बाद विपक्षी दलों का एक संयुक्त मोर्चा सरकार बनाने का दावा अवश्य ही ठोक सकता है।

महागठबंधन का दो धड़ों में बंटने की आशंका:

उत्तर प्रदेश में यदि कांग्रेस पार्टी, बसपा और सपा के ख़िलाफ़ मैदान में उतरती है तो निश्चित तौर पर यह महागठबंधन का दो धड़ों में बंटने जैसा होगा। उस स्थिति में आसार है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस, बसपा को तरजीह न दे। फिर 2019 के चुनाव में बसपा सुप्रीमों मायावती और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष दो धड़ों में भी बंट सकता है। ऐसे में हिंदी पट्टी के राज्यों में सशक्त भाजपा के ख़िलाफ़ बिखरा हुआ विपक्ष सामने होगा, जिसका पूरा फ़ायदा भाजपा उठा सकती है।

केजरीवाल और केसीआर मिला सकते हैं मायावती से हाथ:

2019 का लोकसभा चुनाव संगठित विपक्ष के लिए जितना आसान माना जा रहा था, अब उतना ही कठिन हो चुका है। भाजपा के रूप में ताक़तवर प्रतिद्वंदी के अलावा आपसी फूट से उबरना भी विपक्ष के लिए चुनौती है। इस समय राहुल गांधी के नेतृत्व में जहां एमके स्टालिन और एन चंद्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी व तेजस्वी यादव जैसे नेता साथ नज़र आते हैं, तो वहीं दूसरी ओर बहुजन नेत्री मायावती के समर्थन में अखिलेश यादव के साथ ही आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुखिया अरविन्द केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर आ सकते हैं, ऐसा माना जा रहा है।

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