आरक्षित कोटा 50 से बढ़ाकर 60 प्रतिशत भी कर देंगे, लेकिन एक बार सीमा पार हुई फिर आगे क्या?

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courtesy: reuters

आर्थिक आधार पर कमज़ोर वर्ग को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का प्रावधान मोदी सरकार ने किया है। आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण देने सम्बंधित विमर्श पिछले कई वर्षों से देश में होता रहा है। बावजूद इसके इतनी सशक्त कवायद अब से पहले किसी सरकार ने नहीं की। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की माने तो भारत में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फ़ीसदी निर्धारित है। न्यायालय का कहना है कि 50 प्रतिशत स्थान तो अनारक्षित ही रहना चाहिए। इसी आधार पर देश में एसटी, एससी व ओबीसी के लिए 49.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान अब से पहले था।

सरकार यह स्पष्ट भी कर चुकी है कि जो 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को दिया जाएगा, उसके लिए अलग से प्रावधान किया जाएगा। मतलब साफ़ है कि अब आरक्षण की सीमा को 10 प्रतिशत बढ़ाते हुए करीब 60 प्रतिशत तक ले जाया जाएगा, जोकि पूरी तरह से न्यायपालिका की अवमानना होगी।

एक बार न्यायिक सीमा टूटी तो फिर मुश्किल हो सकती है स्थिति:

आरक्षण के विषय पर जातीय व श्रेणी आधार पर अक्सर देश में आंदोलन होते रहे हैं। कई ऐसे वर्ग हैं जो पृथक आरक्षण की मांग करते रहे हैं। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पाटीदार, आंध्रा प्रदेश में कापू, केरल में दलित क्रिश्चियन व देशभर में अनेक समुदाय समय-समय पर आरक्षण की मांग रखते आए हैं। अनेकों बार उग्रता से प्रदर्शन भी हुए हैं। बावजूद इन सबके अब तक आरक्षण नहीं देने का मुख्य आधार सर्वोच्च न्यायालय का वह प्रावधान रहा है जिसके तहत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती है।

अब यहां विचारणीय विषय है कि यदि सरकार ही इस सीमा को तोड़ते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रबंध करती है तो भविष्य में जातिगत, धार्मिक सामाजिक अथवा सामुदायिक आधार पर आरक्षण के लिए अंतर्कलह बढ़ने की आशंका प्रबल हो जाती है। और उस स्थिति में शायद ही कोई राज्य अथवा केंद्र सरकार, न्यायालय के निश्चित प्रावधान अथवा सीमा का दावा करके आरक्षण की मांग को दबा पाएगी। राजनीतिक स्वार्थ, महत्वाकांक्षाओं और अभिलाषाओं की दिनोंदिन मची होड़, वर्ग विशेष के मन में सरकार और राष्ट्रहितों की खिलाफत करने वाली गृहयुद्ध की स्थिति ला सकती है। तब आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हर वर्ग, हर व्यक्ति को आरक्षण मिल जाए तो, और आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि बगैर सामाजिक समानता प्राप्त करे, आरक्षण ही समाप्त हो जाए तो। क्योंकि ये दो सहज व सरल उपाय ही भविष्य की संभावित समस्याओं का दूरगामी हल नज़र आते हैं।

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