सालभर से चर्चा का विषय बने हुए राफेल हवाई जहाज सौदे पर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष जहां सरकार पर आरोप लगाने से नहीं चूक रहा तो वहीं अब सरकार भी संसद में पूरे धैर्य और समझदारी से राफेल को लेकर उठ रहे सवालों का माक़ूल जवाब दे रही है। पढ़िए ऐसे ही कुछ जवाब जो सरकार के बचाव में रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में दिए।
- एनडीए के राफेल सौदे को यूपीए की तुलना में बेहतर बताते हुए रक्षामंत्री ने कहा कि यूपीए के राफेल की आधारभूत कीमत 737 करोड़ रूपए थी, वहीं भाजपा सरकार द्वारा 670 करोड़ रूपए की आधारीय कीमत पर विमान का सौदा किया गया। तुलनात्मक रूप से यह 9 प्रतिशत कम है।
- यूपीए के अनुसार राफेल भारत को 11 वर्ष बाद सौंपा जाना था। जबकि एनडीए के सौदे के तहत 6 साल का समय दिया गया।
- यूपीए के अनुसार परफॉर्मेंस बेस्ड लॉजिस्टिक सपोर्ट 1 स्क्वाड्रन के लिए 5 साल था, जबकि एनडीए के सौदे के तहत 2 स्क्वाड्रन के लिए 5 साल है।
- उड़ान के घंटे यूपीए के अनुसार कम थे, जबकि एनडीए के सौदे में अधिक है।
- यूपीए को जहां फ्रांस ने 40 साल के औद्योगिक समर्थन का भरोसा दिया था, वहीं एनडीए को 50 साल के समर्थन का भरोसा दिया गया है।
- यूपीए के सौदे में कोई अतिरिक्त वारंटी नहीं थी, जबकि एनडीए के सौदे में 3 अधिक उपयोग किए गए विमानों पर वारंटी दी गई है।
- राफेल में देरी पर रक्षा मंत्री ने कहा कि क्या कारण रहा कि यूपीए यह सौदा 10 वर्ष में नहीं कर सकी, और हमने 14 महीने में कर दिया।
- राष्ट्र की सुरक्षा प्रमुख है। सत्ता में चाहे वो रहे, या हम। हमें समझना चाहिए कि हमारे सुरक्षा बलों को ज़रूरत के उपकरण जल्द उपलब्ध हो।
- भारत की हवाई क्षमता में 2002 की तुलना में 2015 में कमी आई है।
- राफेल पर करार 23 सितम्बर 2015 को किया गया। सभी 36 राफेल लड़ाकू विमान 2022 तक भारत को सौंप दिए जाएंगे।
- कांग्रेस लगातार कह रही है कि राफेल का 95 प्रतिशत सौदा यूपीए सरकार में ही तय हो चुका था। इसका मतलब कांग्रेस को भुगतान प्रक्रिया की जानकारी है, और उन्होने मंत्रालय में इसके लिए प्रावधान भी बनाए होंगे। लेकिन फरवरी 2013 में तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा था कि रक्षा मंत्रालय के पास मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे।
- राफेल विमान खरीदने का प्रस्ताव 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में लाया गया था लेकिन यूपीए के समय इस पर धीमी गति से कार्यवाही हुई। 2014 के बाद सरकार ने तेजी से इस ओर काम किया।
- यूपीए ने राफेल के लिए एचएएल के साथ कोई सौदा नहीं किया था। भारत में सभी विमानों का उत्पादन फ़्रांस से तैयार करवाने की तुलना में महंगा पड़ता। साथ ही 2.7 गुना अधिक संख्याबल की आवश्यकता होती। डसॉल्ट भी एचएएल के द्वारा निर्मित विमानों की गारंटी लेने के लिए तैयार नहीं था।
- मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता वाली लोक लेखा संसदीय समिति तेजस विमानों में देरी के कारण एचएएल पर सवाल उठाती है, वही खड़गे फिर राहुल गांधी को एचएएल के मुख्यालय लेकर जाते है।
- 562 करोड़ और 1680 करोड़ रूपए की तुलना अव्यवहारिक और अनुचित है। कांग्रेस देश को भ्रमित कर रही है।