2019 का चुनावी समर शुरू होने को है। देश की 17वीं लोकसभा के गठन के लिए होने जा रहे चुनाव का परिणाम देश के राष्ट्रीय और स्थानीय दलों की दशा एवं दिशा के साथ ही भारत की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का भविष्य निर्धारण भी करेगा।
जनमत की विश्वसनीयता को लेकर जूझ रही कांग्रेस जहां इस बार फिर से सत्ता में वापसी के लिए बेकरार है, तो वहीं अपनी राजशाही बरकरार रखने की जद्दोजहद भाजपा की तरफ़ से दिखाई देती है। इस चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी का नज़रिया देखा जाए तो स्पष्ट है कि अजेय प्रतीत हो रही भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस किसान कर्जमाफी, युवाओं को रोजगार और राफेल सौदे की कथित अनियमितता के मुद्दों को आधार बनाएगी।
क्योंकि विकास के नाम पर घेराबंदी संभव नहीं:
देश के राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो कांग्रेस पार्टी, सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ विकास के मसले को चुनावी मुद्दा नहीं बना सकती। कारण यह कि पिछले साढ़े चार साल में भाजपा द्वारा किए गए कार्यों, योजनाओं व परियोजनाओं को देखा जाए तो वह एक विकासपरक सरकार के रवैये को दर्शाती है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में आधारभूत अवसंरचना निर्माण से लेकर अन्य प्रदेशों में सड़क मार्ग, पुलिया जैसी भौतिक सुविधाओं के साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा, विद्युतीकरण आदि क्षेत्रों में भी सरकार ने रफ़्तार से काम किया है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी विकास की कमी को चुनावी मुद्दा बनाएगी, इसके आसार तो नहीं लगते।
भ्रष्टाचार भी नहीं होगा बड़ा विषय:
गौरतलब है कि वर्तमान केंद्र सरकार पर अभी तक भ्रष्टाचार, गबन अथवा घोटालेबाजी का कोई आरोप सिद्ध नहीं हो पाया है। हालांकि नोटबंदी, माल्या, नीरव मोदी और राफेल के रूप में विपक्ष ने सरकार पर आरोप तो कई लगाए हैं, लेकिन बावजूद उसके जनता की विश्वसनीयता की मुहर विपक्ष के दावों में नज़र नहीं आती।
कर्जमाफी, और रोजगार के मसले पर बैकफुट पर भाजपा:
देखा जाए तो अब तक विपक्ष की हर रणनीति का माकूल जवाब देती रही भाजपा सरकार किसान कर्जमाफी, युवाओं को रोजगार और राफेल सौदे पर कांग्रेस के आक्रामक तेवर के आगे बैकफुट पर ही नज़र आ रही है। सरकार भले ही दावें करें लेकिन ज़मीनी सच्चाई और विभिन्न रिपोर्ट्स के आंकड़े, देश में रोजगार संकट की स्थिति दर्शाते हैं। साल-दर-साल बढ़ती किसान आत्महत्या और उग्र होते किसान आंदोलन भी भाजपा को पीछे धकेल रहे हैं। इसी के साथ राफेल विमान सौदे को लेकर सदन के बाहर और अंदर कांग्रेस का लगातार मोदी सरकार को घेरना भी सरकार के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
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