राजस्थान की राजनीति के केंद्र एवं राजधानी जयपुर ज़िले के दायरे में 8 शहरी और 11 ग्रामीण विधानसभा सीटें आती हैं। लोकसभा सीट की बात करे जो जयपुर शहर और ग्रामीण, स्पष्टतः दो सांसद यहीं से चुने जाते हैं। इन दोनों सीटों पर चुनाव परिणाम पूरे प्रदेश की ग्रामीण जनता का मूड और शहरी मतदाताओं का नज़रिया निर्धारित करती है। वर्तमान में यहां की शहरी सीट से सांसद भाजपा के रामचरण बोहरा है तो जयपुर ग्रामीण से केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़।
कांग्रेस के लिए आसान नहीं जयपुर शहर लोकसभा पर प्रत्याशी का चुनाव:
जयपुर शहर लोकसभा की बात की जाए तो यह सीट कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। 1952 के पहले चुनाव से अब तक यहां से केवल तीन बार कांग्रेसी उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंच सका है। 1952 में दौलत मल के बाद 1984 में नवल किशोर शर्मा व 2009 में डॉ.महेश जोशी ही कांग्रेस पार्टी के लिए यह सीट निकाल पाए हैं। 2009 में यहां से जीतकर सांसद बने महेश जोशी भी 2014 में भाजपा के रामचरण बोहरा के सामने करारी हार झेल चुके है। इसी के साथ हालियां विधानसभा चुनाव में जोशी भाजपा की मज़बूत विधानसभाओं में से एक माने जाने वाली हवामहल से जीत हासिल कर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बन चुके है। ऐसे में गौर किया जाए तो इस दफ़ा कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा ही नहीं है जिसे वो जयपुर शहर से आगे कर सके। इस सीट पर कांग्रेस यदि किसी नए चेहरे पर दांव खेलती है तो आसार है कि पूर्व आईएएस अजय सिंह चित्तौड़ा, पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल अथवा राजीव अरोड़ा इसके लिए उम्मीदवार हो सकते हैं। अजय चित्तौड़ा जहां 37 वर्ष तक जयपुर में प्रशासनिक पद पर रहने के कारण जाना-पहचाना नाम है, तो वहीं पार्टी में सक्रिय ज्योति खंडेलवाल शहर की पूर्व महापौर रह चुकी है। इसी के साथ जनसामान्य और अपनी पार्टी के मध्य सक्रियता के चलते राजीव अरोड़ा का नाम भी प्रमुख दावेदार के तौर पर सामने आ रहा है।
जयपुर ग्रामीण के चुनावी मैदान में कांग्रेस उतार सकती है बाहरी उम्मीदवार:
साल 2009 में जयपुर लोकसभा के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई ग्रामीण लोकसभा सीट पर अब तक दो बार चुनाव हुए हैं। 2009 के आम चुनाव में जहां कांग्रेस की ओर से लालचंद कटारिया जीतकर संसद पहुंचे थे, तो 2014 में भाजपा के राज्यवर्धन सिंह राठोड़ ने भारी अंतर से पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी को हराया था। ज़िले की इस लोकसभा सीट से 2019 में कांग्रेस की तरफ़ से किसी बाहरी उम्मीदवार के लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि यदि उम्मीदवार प्रदेश का ही होता है, तो लालचंद कटारिया को फिर से मौक़ा दिया जा सकता है।
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