साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा और एनडीए का चेहरा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के सिवाय बमुश्किल हीं आता है, वहीं महागठबंधन की ताल ठोकने जा रहा विपक्ष किसी एक भरोसेमंद व दमदार चेहरे के नेतृत्व में विश्वास नहीं जता पा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार भले ही अपने आप को आगे कर चुके हो, मगर विपक्ष की साझा सहमति उन्हें नेता मानने को तैयार नहीं है। ऐसे में देश के वर्तमान राजनीतिक हालातों के आधार इस बात के पूरे आसार है कि बसपा सुप्रीमो व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती 2019 में विपक्षी मोर्चे की अगुआ बन सकती है। इन दिनों कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही मायावती का रवैया इस बात की ओर इशारा करता है कि 2019 में विपक्ष का नेतृत्व किसी गैर कांग्रेसी के ज़िम्मे होना चाहिए। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी मायावती के इस रुख का समर्थन करते नज़र आते हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेस और भाजपा के बाद देश के लगभग हर एक राज्य में अपना वज़ूद रखने वाली तीसरी राजनैतिक पार्टी बसपा है। इस बात को ध्यान में रखकर भाजपा विरोध की रट लगाए बैठा विपक्ष 2019 से पहले यदि मायावती के समर्थन में एकजुट हो जाए, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बिहार-यूपी का फॉर्मूला हो सकता है हिट:
देश की 543 में से 120 लोकसभा सीट बिहार और उत्तर प्रदेश के दायरे में आती है। इन दो राज्यों में मज़बूत पकड़ होने पर दिल्ली की सत्ता से नज़दीकियां बढ़ती जाती है, भारतीय राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह रहा है। ऐसे में यूपी के सियासी खेल में माहिर माने जाने वाली मायावती इस दफ़ा देश के अन्य राज्यों में विपक्षी गठजोड़ के सटीक समीकरण बैठाते हुए केंद्रीय सत्ता के करीब जा सकती है, इसकी संभावना बहुत हद तक नज़र आ रही है।
मुलायम, लालू, ममता नहीं है तैयार:
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी जिस गंभीरता से मायावती कर रही है वह देश के अन्य किसी स्थानीय राजनैतिक दल अथवा नेता में नज़र नहीं आती। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव जहां राजनीतिक निष्क्रियता के दौर में है तो लालू प्रसाद यादव घोटालों में दोषी पाए जाने के बाद जेल में। इसी के साथ ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव सरीखे नेता अपने प्रदेश से बाहर झांकने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। इस स्थिति में बहुजन नेत्री मायावती का उभरना स्वाभाविक ही है।
राहुल गांधी की अस्वीकार्यता कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है:
गौरतलब है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की अस्वीकार्यता देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। वंशवाद का आक्षेप झेल रहे राहुल के प्रति बेरुखी इस कदर है कि न विपक्ष राहुल को नेता मानने को तैयार है, और न ही देश। अभी कुछ दिनों पहले ही महागठबंधन के तमाम घटक दलों का यह कहना कि विपक्ष के नेता का चयन 2019 के चुनाव बाद किया जाएगा, राहुल के प्रति विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह है।
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