मौक़ा था पाकिस्तान के क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना की जयंती का। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए दो ट्वीट किए कि ”जिन्ना ने पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक, न्यायपूर्ण और दयालु राष्ट्र के रूप में परिकल्पित किया। सबसे महत्वपूर्ण बात वह चाहते थे कि हमारे यहां अल्पसंख्यक समान नागरिक हो। यह याद रखना चाहिए कि उनका शुरुआती राजनीतिक जीवन हिंदू-मुस्लिम एकता के राजदूत के रूप में था।
मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र के लिए उनका संघर्ष केवल तब शुरू हुआ, जब उन्होंने महसूस किया कि मुसलमानों को हिंदू बहुसंख्यकों की तरह समान नागरिक नहीं माना जाएगा। नया पाकिस्तान जिन्ना का पाकिस्तान है, और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारे अल्पसंख्यकों को समान नागरिक माना जाए।”
अपने इन ट्वीट्स के ज़रिए इमरान खान ने भारतीय मुस्लिम व अल्पसंख्यक समुदाय को भारत में असुरक्षित बताया। इसके साथ पाकिस्तान को लोकतांत्रिक और अल्पसंख्यकों के लिए न्यायपूर्ण एवं दयालु देश बताया। इमरान खान की इस बात का माकूल जवाब भारत की तरफ से दिया गया।
कैफ, नसीरुद्दीन शाह ने लताड़ा:
गौरतलब है कि इमरान खान ने ये ट्वीट्स नसीरुद्दीन शाह के उस विवादित इंटरव्यू के बाद किए है, जिनमें नसीरुद्दीन शाह ने भारत में कथित मज़हबी नफ़रत के प्रति डर और गुस्सा जाहिर किया था। इमरान ने अपने ट्वीट्स से भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को भड़काने की कोशिश की, तो नसीरुद्दीन शाह ने पलटवार करते हुए नसीहत दे डाली कि ”इमरान उन मुद्दों पर टिप्पणी नहीं करे, जिसका उससे सम्बन्ध नहीं है। वह अपने देश के बारे में सोचे। भारत में 70 साल से लोकतंत्र है, हम जानते हैं कि हमें अपनी देखभाल कैसे करनी है।”
पूर्व भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने ट्वीट करते हुए इमरान को जवाब दिया कि ”पाकिस्तान में विभाजन के समय लगभग 20% अल्पसंख्यक थे, अब 2% से भी कम शेष हैं। दूसरी ओर अल्पसंख्यक आबादी आजादी के बाद से भारत में काफी बढ़ी है। पाकिस्तान आखिरी देश है, जिसे किसी भी देश को अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार करने के तरीके पर व्याख्यान देना चाहिए।”
औवेसी और गिरिराज सिंह ने भी फटकारा:
अल्पसंख्यकों की देखभाल सम्बंधित इमरान खान के बयान और ट्वीट्स के बाद भारतीय राजनीति के परस्पर ध्रुवी राजनेता एआईएमएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री को फटकार लगाईं। औवेसी ने एक ट्वीट में कहा कि ”पाकिस्तानी संविधान के अनुसार, केवल एक मुस्लिम राष्ट्रपति बनने के योग्य है, जबकि भारत ने अल्पसंख्यक एवं शोषित समुदायों के कई राष्ट्रपतियों को देखा है। यह सही समय है कि इमरान खान समावेशी राजनीति और अल्पसंख्यक अधिकारों के बारे में हमसे कुछ सीखे।”
गिरिराज सिंह ने ट्वीट किया कि ”आज़ादी के बाद पाकिस्तान में हिंदू 23% से घट के 2% हो गए और हिंदुस्तान में मुसलमान 8% से बढ़कर 20% हो गए। अब पाकिस्तान जैसा आतंकी, भिखारी देश हिंदुस्तान को बताएगा कि माइनॉरिटी के साथ कैसे बर्ताव किया जाता है? यहां हर कोई अपनी मर्जी के हिसाब से फला-फूला।”
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति अच्छी नहीं:
अल्पसंख्यक अधिकारों और हितों की बात करने वाले इमरान खान शायद भूल गए कि जिस पाकिस्तान के वह प्रधानमंत्री है, वहां हिन्दू, सिख, ईसाई, अहमदिया, हज़ारा आदि अल्पसंख्यक समुदाय बड़े बद्तर हालात से गुज़र रहे हैं। ‘स्टेट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स इन 2017’ की रिपोर्ट कहती है कि 70 वर्ष में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 फ़ीसदी से घटकर अब केवल 3 प्रतिशत रह गई है। ऐसे में इमरान पाकिस्तान के जर्जर लोकतंत्र और दफ़न हो चुकी इंसानियत की फ़िक्र मनाए तो बेहतर होगा।
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