उत्तर प्रदेश के आगरा में 15 साल की एक लड़की को दिनदहाड़े ज़िंदा जलाकर मार दिया जाता है। बीते मंगलवार दोपहर के समय संजलि अपने स्कूल से घर लौट रही थी। घर पहुंचने ही वाली थी कि बाइक सवार दो इंसानी शक्ल के जाहिलों ने उस पर पेट्रोल की बोतल उड़ेल दी, और जला हुआ लाइटर फेंक कर भाग निकले। आग को माथे पर लिए संजलि चिल्लाने लगी, ज़मीन में सर दे मारा मगर आग नहीं बुझी। शरीर 75 फ़ीसदी तक झुलस चुका था। पास के अस्पताल ले जाया गया, इस भयावह अवस्था के आगे यह व्यवस्था नाकाफी थी। दिल्ली के सफदरजंग रैफर कर दिया गया। दो दिन तक बेहद नाज़ुक स्थिति में संघर्षरत रही संजलि ने आखिरकार दम तोड़ दिया।
सुनते ही सिरहन पैदा कर देने वाली यह घटना किसी सभ्य समाज में हो ही नहीं सकती। कायदे-क़ानून का भय हो तो अपराधियों में हिम्मत ही नहीं होती, ऐसा सोंच भी पाने की। मगर अफ़सोस कि इस व्यथित करने वाले वाकये को हफ्ताभर हो चुका है, हत्यारें अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। समझ नहीं आता कि कुछ दिनों पहले तक एनकाउंटर पर एनकाउंटर की डींगें हांकने वाली यूपी पुलिस यहां निरीह क्यों नज़र आ रही है! शासन-प्रशासन, सिस्टम, सब बेबसी के बदनुमे दौर से गुज़र रहे हैं। सरकारी तंत्र के मंत्री-संत्री और मुख्यमंत्री भी निष्क्रियता और निस्तेजता से जूझते हुए प्रतीत होते हैं।
इन सबके बीच मासूम संजलि की माँ बताती है कि अस्पताल में रोते हुए वह कहती रही कि ”मैं नहीं लड़ पाउंगी, लेकिन तुम हार मत मानना। मेरे लिए न्याय की लड़ाई तुम्हें लड़नी है।”
आईपीएस बनना चाहती थी संजलि:
संजलि के पिता बताते है कि ”वह बड़े सपने देखने वाली लड़की थी। मुझे जहां तक याद आता है उसने मुझे कहा था कि मैं पुलिस अधिकारी (आईपीएस) बनना चाहती हूँ।”
मंत्री आए, कहा- 2 नहीं 5 लाख ले लो:
संजलि के पिता हरेंद्र सिंह जाटव बताते हैं कि ”घटना के प्रति देशभर में आक्रोश बढ़ने लगा, तो सूबे के उप मुख्यमंत्री उनके घर आए। बिटिया की ह्त्या पर संवेदना व्यक्त करते हुए 2 लाख रुपए लेने को कहा, बाद में कहा कि चलो 5 लाख ले लो।”
यहां ताज़्ज़ुब होता है मानवता और शासन व्यवस्था को शर्मसार कर देने वाली इस घटना पर सरकारी सौदेबाज़ी की बेशर्म कोशिशों के बारे में जानकार। साथ ही प्रदेश के मुखिया की वो चेतावनी याद आती है जब कहा गया था कि ”गुंडे और माफ़िया यूपी छोड़कर चले जाए, क्योंकि अब वो ऐसी जगह जाने वाले हैं जहां कोई नहीं जाना चाहेगा।” क्या वह भाषणबाजी महज़ दिल बहलाने और आभासी सुकून देने के लिए थी, क्योंकि विवेक तिवारी, इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और अब संजलि साथ हुई इन घटनाओं के बाद लगता है कि शहरों के नाम बदलने वाले हुक्मरान, जंगलराज और उसकी हैवानियत के आगे धराशाही हो गए है।
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