जयपुर शहर की दो विधानसभा सीट, जहां हार-जीत के समीकरण आज भी साम्प्रदायिकता पर टिके हैं।

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जयपुर टुडे में हम आपको बता रहे हैं शहर की उन दो विधानसभा सीटों के बारे में जहां न चुनावी उम्मीदवार की जान-पहचान मायने रखती है, न क्षेत्र का विकास और न ही जनता की नाराज़गी। यहां मायने रखता है तो सिर्फ धार्मिक तुष्टिकरण और राजनेताओं की सांप्रदायिक चाल-चौकड़ी।

आदर्श नगर:

जयपुर शहर की 8 में से एक प्रमुख सीट है ‘आदर्श नगर।’ यह ऐसी सीट है जहां हर बार चुनावी मौसम में धार्मिक ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण जनमत के ऊपर हावी रहता है। इस सीट पर 40 प्रतिशत के करीब मुस्लिम मतदाता अपना प्रभुत्व रखते हैं। इस फैक्टर को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आदर्श नगर से मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी का चयन करती रही है। लेकिन हर बार आदर्श नगर की सीट भाजपा के अशोक परनामी के झोले में जा रही है, जोकि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। पिछली दोनों बार परनामी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के दिवंगत नेता माहिर आज़ाद को शिकस्त देते आए हैं। धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व होने के बावजूद भी माहिर आज़ाद क्षेत्र के हिन्दू मतदाताओं को रिझाने में नाकाम साबित हुए। इसका परिणाम यह रहा कि स्थानीय जनता वर्तमान विधायक से नाखुश तो नज़र आती है, मगर बावजूद इसके जनसामान्य के बीच हिन्दू-मुस्लिम ट्रंपकार्ड खेलकर जोड़-तोड़ में पारंगत परनामी बाजी मार ले जाते हैं।

इस बार भी चुनाव में भाजपा ने परनामी को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर मुस्लिम उम्मीदवार पर भरोसा जताते हुए रफीक खान को बतौर प्रत्याशी जनता के बीच उतारा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आदर्श नगर में इस दफ़ा लोकतंत्र की विजय होती है, या जनसामान्य को अनचाही सांप्रदायिक पशोपेश में उलझाकर रख देने वाले राजशाही के धुरंधरों की।

किशनपोल:

धार्मिक आधार पर प्रभावित होने वाली जयपुर की दूसरी विधानसभा किशनपोल है। जयपुर के परकोटे को समेटते किशनपोल में भी आदर्श नगर की तरह मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने 2008 में अपने आला नेता अश्क अली टांक को यहाँ से टिकट दिया, लेकिन भाजपा के मोहन लाल गुप्ता ने उन्हें हरा दिया। अगले विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस ने अमीनुद्दीन को प्रत्याशी बनाया। इस बार भी कांग्रेस को भाजपा के मोहन लाल गुप्ता से करारी मात खानी पड़ी। इस बार कांग्रेस ने अमीन कागज़ी को मोहन लाल गुप्ता के सामने मैदान में उतारा है। यहां देखना रोचक होगा कि क्या इस बार भी हार-जीत के समीकरण धर्म-सम्प्रदाय निर्धारित करेंगे अथवा विकास की मांग इन सब पर हावी रहेगी। क्योंकि क्षेत्र की जनता मौजूदा विधायक से नाराज़ भले रही हो लेकिन जनमानस के अंतर्मन में पैठ कर चुकी साम्पदायिक दुर्भावना की नौका नेताजी की वैतरणी को पार लगा ही देती है।

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